"गीता 16:4" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो (Text replace - 'पुरूष' to 'पुरुष')
छो (Text replace - '<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>' to '<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>')
 
(२ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के २ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति ५३: पंक्ति ५३:
 
<td>
 
<td>
 
{{गीता अध्याय}}
 
{{गीता अध्याय}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 +
{{गीता2}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 +
{{महाभारत}}
 
</td>
 
</td>
 
</tr>
 
</tr>
 
</table>
 
</table>
[[category:गीता]]
+
[[Category:गीता]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

१२:२४, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण

गीता अध्याय-16 श्लोक-4 / Gita Chapter-16 Verse-4

प्रसंग-


इस प्रकार धारण करने के योग्य दैवीसम्पत् से युक्त पुरुष के लक्षणों का वर्णन करके अब त्याग करने योग्य आसुरी-सम्पत् से युक्त पुरुष के लक्षण संक्षेप में कह जाते हैं-


दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारूष्यमेव च ।

अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम् ।।4।।


हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।" style="color:green">पार्थ</balloon> ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी-सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं ।।4।।

Hypocrisy, arrogance and pride, and anger, sternness and igorance too,—these are marks of him, who is born with demoniac properties. (4)


पार्थ = हे पार्थ ; दम्म: = पाखण्ड ; दर्प: = घमण्ड ; च = और ; अभिमान: = अभिमान ; च = तथा ; क्रोध: = क्रोध ; च = और ; पारूष्यम् = कठोर वाणी (एवं) ; अज्ञानम् = अज्ञान ; एव = भी (यह सब) ; आसुरीम् = आसुरी ; संपदम् = संपदा को ; अभिजातस्य = प्राप्त हुए पुरुष के (लक्षण हैं) ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • गीता अध्याय-Gita Chapters
    • गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
    • गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
    • गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
    • गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
    • गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
    • गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
    • गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
    • गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
    • गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
    • गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
    • गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
    • गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
    • गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
    • गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
    • गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
    • गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
    • गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter

</sidebar>