"गीता 17:14" के अवतरणों में अंतर
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− | ''' | + | '''देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम् ।'''<br/> |
'''ब्रह्राचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ।।14।।''' | '''ब्रह्राचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ।।14।।''' | ||
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− | देवता, ब्राह्राण, गुरु और ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्राचर्य और अहिंसा – यह शरीर संबंधी तप कहा जाता है ।।14।। | + | [[देवता]], ब्राह्राण, गुरु और ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्राचर्य और अहिंसा – यह शरीर संबंधी तप कहा जाता है ।।14।। |
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− | देव = देवता ; द्विज = ब्राह्मण ; | + | देव = देवता ; द्विज = ब्राह्मण ; गुरु = गुरु (और) ; प्राज्ञ = ज्ञानीजनों का ; पूजनम् = पूजन (एवं) ; शौचम् = पवित्रता ; आर्जवम् = सरलता ; ब्रह्मचर्यम् = ब्रह्मयर्य ; च = और ; अहिंसा = अहिंसा (यह) ; शारीरम् =शरीर संबन्धी ; तप: = तप ; उच्यते = कहा जाता है |
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१२:२५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-17 श्लोक-14 / Gita Chapter-17 Verse-14
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