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गीता अध्याय-18 श्लोक-4 / Gita Chapter-18 Verse-4
प्रसंग-
इस प्रकार संन्यास और त्याग के विषयों में विद्धानों के भिन्न-भिन्न मत बतलाकर अब भगवान त्याग के विषय में अपना निश्चय बतलाना आरम्भ करते हैं-
निश्चयं श्रृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम ।
त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविध: संप्रकीर्तित: ।।4।।
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हे पुरुष श्रेष्ठ <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! संन्यास और त्याग, इन दोनों में से पहले त्याग के विषय में मेरा निश्चय सुन । क्योंकि त्याग सात्त्विक, राजस और तामस भेद से तीन प्रकार का कहा गया है ।।4।।
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Of Samnyasa and Tyaga, first hear My conclusion on the subject of Tyaga, O tiger among men Arjuna, for Tyaga, has been declared to be of three kinds—Sattvika Rajasika and Tamasika.(4)
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भरतसत्तम – हे अर्जुन ; तत्र = उस ; त्यगे = त्याग के विषय में (तूं) ; मे = मेरे ; निश्र्चय को ; श्रृणु = सुन ; पुरुषव्याघ्र = हे पुरुषश्रेष्ठ (वह) ; त्याग: = त्याग (सात्त्वि के राजस और तामस ऐसे) ; त्रिविध: = तीनों प्रकार का ; हि = ही ; संप्रकीर्तित: = कहा गया है ;
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