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२१:२२, ४ मार्च २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-1 श्लोक-11 / Gita Chapter-1 Verse-11
प्रसंग-
<balloon link="index.php?title=दुर्योधन" title="धृतराष्ट्र-गांधारी के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र दुर्योधन था। दुर्योधन गदा युद्ध में पारंगत था और श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का शिष्य था।
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दुर्योधन</balloon> के द्वारा अपने पक्ष के महारथियों की विशेष रूप से पितामह भीष्म की प्रशंसा किये जाने का वर्णन सुनाकर अब <balloon link="index.php?title=संजय" title="संजय को दिव्य दृष्टि का वरदान था । जिससे महाभारत युद्ध में होने वाली घटनाओं का आँखों देखा हाल बताने में संजय, सक्षम था । श्रीमद् भागवत् गीता का उपदेश जो कृष्ण ने अर्जुन को दिया, वह भी संजय द्वारा ही सुनाया गया ।
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संजय</balloon> उसके बाद की घटनाओं का वर्णन करते हैं-
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिता: ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त: सर्व एव हि ।।11।।
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इसलिये सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी नि:सन्देह <balloon link="index.php?title=भीष्म" title="भीष्म महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं । ये महाराजा शांतनु के पुत्र थे । अपने पिता को दिये गये वचन के कारण इन्होंनें आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था । इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था।
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भीष्म</balloon> पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें ।।11।।
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Therefore, stationed in your respective positions of all fronts, you all guard Bhisma in particular on all sides.
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सर्वेषु = सब; अयनेषु = मोर्चों पर; यथाभागम् = अपनी अपनी जगह; अविस्थता: = स्थित रहते हुए; भवन्त: = आपलोग; सर्वें = सबके सब; एव = ही; हि = नि:सन्देह; भीष्मम् = भीष्म पितामह की; एव = ही;अभिरक्षन्तु = सब ओर से रक्षा करें;
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