"गीता 2:1" के अवतरणों में अंतर
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भगवान् [[श्रीकृष्ण]] ने [[अर्जुन]] से क्या बात कही और किस प्रकार उसे युद्ध के लिये पुन: तैयार किया; यह सब बतलाने की आवश्कता होने पर [[संजय]] अर्जुन की स्थितिका वर्णन करते हुए दूसरे अध्याय का आरम्भ करते हैं- | भगवान् [[श्रीकृष्ण]] ने [[अर्जुन]] से क्या बात कही और किस प्रकार उसे युद्ध के लिये पुन: तैयार किया; यह सब बतलाने की आवश्कता होने पर [[संजय]] अर्जुन की स्थितिका वर्णन करते हुए दूसरे अध्याय का आरम्भ करते हैं- | ||
इस अध्याय में शरणागत अर्जुन द्वारा अपने शोक की निवृति का एकान्तिक उपाय पूछे जाने पर पहले-पहले भगवान् ने तीसवें श्लोक तक आत्मतत्व का वर्णन किया है । सांख्य योग के साधन में आत्मतत्त्वका श्रवण, मनन और निदिध्यासन ही मुख्य है । यद्यपि इस अध्याय में तीसवें श्लोक के बाद स्वधर्म का वर्णन करके कर्मयोग स्वरूप भी समझाया गया है, परंतु उपदेश का आरम्भ सांख्ययोग से ही हुआ है और आत्मतत्त्व का वर्णन अन्य अध्यायों की अपेक्षा इसमें अधिक विस्तारपूर्वक हुआ है इस कारण इस अध्याय का नाम 'सांख्ययोग' रखा गया है । | इस अध्याय में शरणागत अर्जुन द्वारा अपने शोक की निवृति का एकान्तिक उपाय पूछे जाने पर पहले-पहले भगवान् ने तीसवें श्लोक तक आत्मतत्व का वर्णन किया है । सांख्य योग के साधन में आत्मतत्त्वका श्रवण, मनन और निदिध्यासन ही मुख्य है । यद्यपि इस अध्याय में तीसवें श्लोक के बाद स्वधर्म का वर्णन करके कर्मयोग स्वरूप भी समझाया गया है, परंतु उपदेश का आरम्भ सांख्ययोग से ही हुआ है और आत्मतत्त्व का वर्णन अन्य अध्यायों की अपेक्षा इसमें अधिक विस्तारपूर्वक हुआ है इस कारण इस अध्याय का नाम 'सांख्ययोग' रखा गया है । | ||
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'''तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।'''<br /> | '''तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।'''<br /> |
११:३४, ७ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-1 / Gita Chapter-2 Verse-1
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अध्याय दो श्लोक संख्या Verses- Chapter-2 |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 |
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