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०४:३६, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-19 / Gita Chapter-2 Verse-19
प्रसंग-
पूर्व श्लोक में यह कहा कि आत्मा किसी के द्वारा नहीं मारा जाता , इस पर यह जिज्ञासा होती है कि आत्मा किसी के द्वारा नहीं मारा जाता, इसमें क्या कारण है ? इसके उत्तर में भगवान् आत्मा में सब प्रकार के विकारों का अभाव बतलाते हुए उसके स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं-
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् ।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ।।19।।
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जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मारा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते; क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है ।।19।।
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They are both ignorant, he who knows the soul to be capable to killing and he who takes it as killed; for verily the soul neither kills, nor is killed.(19)
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य: = जो ; एनम् = इस आत्माको ; हन्तारम् = मारनेवाला ; वेत्ति = समझता है ; च = तथा ; य: =जो ; इनम् = इसको ; हतम् = मरा ; हन्ति = मारता है (और) ; मन्यते = मानता है ; तौ = वे ; उभौ = दोनों ही ; न = नहीं ; विजानीत: = जानते हैं (क्योंकि) ; अयम् = यह आत्मा ; न = न ; हन्यते = मारा जाता है
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