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− | ''' | + | '''श्रीभगवान् बोले-''' |
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− | + | हे [[अर्जुन]] ! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरूषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्तिको करने वाला ही है ।।2।। | |
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− | ''' | + | '''Sri bhagavan said''' |
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− | + | arjuna, how has this infatuation overtaken you at this odd hour ? It is shunned by noble souls; neither will it bring heaven, nor fame, to you. (2) | |
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− | + | त्वा = तुमको (इस) ; विषमे = विषमस्थलमें ; इदम् = यह ; कश्मलम् = अज्ञान ; कुत: = किस हेतुसे ; समुपस्थितम् = प्राप्त हुआ ; (यत:) = क्योंकि (यह) ; अनार्यजुष्टम् = न तो श्रेष्ट पुरूषोंसे आचरण किया गया है ; अखग्यरर्म = न स्वर्गको देनेवाला है ; अकीर्तिकरम् = न कीर्तिकों करनेवोला है ; | |
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०८:३७, ७ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-2 / Gita Chapter-2 Verse-2
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अध्याय दो श्लोक संख्या Verses- Chapter-2 |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 |
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