गीता 2:30

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गीता अध्याय-2 श्लोक-30 / Gita Chapter-2 Verse-30

प्रसंग-


यहाँ तक भगवान् ने सांख्य योग के अनुसार अनेक युक्तियों द्वारा नित्य, शुद्ध, बुद्ध, सम, निर्विकार और अकर्ता आत्मा के एकत्व, नित्यत्व, अविनाशित्व आदि का प्रतिपादन करके तथा शरीरों को विनाशशील बतलाकर आत्मा के या शरीरों के लिये अथवा शरीर और आत्मा के वियोग के लिये शोक करना अनुचित सिद्ध किया । साथ ही प्रसंग वश आत्मा को जन्मने-मरनेवाला मानने पर शोक करने के अनौचित्का प्रतिपादन किया और अर्जुन को युद्ध करने के लिये आज्ञा दी । अब सात श्लोकों द्वारा क्षात्र धर्म के अनुसार शोक करना अनुचित सिद्ध करते हुए अर्जुन को उस के लिये उत्साहित करते हैं –


देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ।।30।।




हे अर्जुन ! यह आत्मा सब के शरीरों में सदा ही अवध्य है । इस कारण सम्पूर्ण प्राणियों के लिये तू शोक करने को योग्य नहीं है ।।30।।


arjuna, this soul dwelling in the bodies of all can never be slain; therefore, you should not mourn for anyone.(30)


भारत = हे अर्जुन ; अयम् = यह ; देहे = शरीरमें ; नित्यम् = सदा ही ; अवध्य: = अवध्य है ; तस्मात् = इसलिये ; सर्वाणि = संपूर्ण ; भूतानि = भूतप्राणियोंके लिये; त्वम् = तूं ; शोचितुम् = शोक करनेको ; न अर्हसि = योग्य नहीं है;


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अध्याय एक श्लोक संख्या
Verses- Chapter-1

1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

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