"गीता 2:38" के अवतरणों में अंतर
छो (Text replace - '<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>' to '<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>') |
|||
(४ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ७ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
− | {{menu}} | + | {{menu}} |
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
पंक्ति ९: | पंक्ति ९: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
− | यहाँ तक भगवान् ने सांख्य योग के सिद्धान्त से तथा | + | यहाँ तक भगवान् ने सांख्य योग के सिद्धान्त से तथा क्षत्रिय धर्म की दृष्टि से युद्ध का औचित्य सिद्ध करके <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को समतापूर्वक युद्ध करने के लिये आज्ञा दी। अब कर्मयोग के सिद्धान्त से युद्ध का औचित्य बतलाने के लिये कर्मयोग के वर्णन की प्रस्तावना करते हैं- | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
− | '''सुखदु:खे समे कृत्वा | + | '''सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभो जयाजयौ ।'''<br/> |
− | '''ततो यूद्धाय युज्यस्व नैवं | + | '''ततो यूद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ।।38।।''' |
</div> | </div> | ||
---- | ---- | ||
पंक्ति २३: | पंक्ति २४: | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
---- | ---- | ||
− | जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दु:ख को समान समझ कर, उसके बाद युद्ध के लिये तैयार हो | + | जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दु:ख को समान समझ कर, उसके बाद युद्ध के लिये तैयार हो जा। इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा ।।38।। |
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
---- | ---- | ||
− | Treating alike victory and defeat, gain and loss, pleasure and pain, get ready for the fight, | + | Treating alike victory and defeat, gain and loss, pleasure and pain, get ready for the fight; then, fighting thus you will not incur sin.(38) |
|- | |- | ||
|} | |} | ||
पंक्ति ३९: | पंक्ति ४०: | ||
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
− | < | + | <tr> |
+ | <td> | ||
<br /> | <br /> | ||
<div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 2:37|<= पीछे Prev]] | [[गीता 2:39|आगे Next =>]]'''</div> | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 2:37|<= पीछे Prev]] | [[गीता 2:39|आगे Next =>]]'''</div> | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
<br /> | <br /> | ||
{{गीता अध्याय 2}} | {{गीता अध्याय 2}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
{{गीता अध्याय}} | {{गीता अध्याय}} | ||
− | [[ | + | </td> |
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{गीता2}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{महाभारत}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | </table> | ||
+ | [[Category:गीता]] | ||
+ | __INDEX__ |
१२:३४, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-38 / Gita Chapter-2 Verse-38
|
||||||||
|
||||||||
|
||||||||
<sidebar>
__NORICHEDITOR__
</sidebar> |
||||||||
|
||||||||