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०५:५२, १५ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-71 / Gita Chapter-2 Verse-71
प्रसंग-
इस प्रकार अर्जुन के चारों प्रश्नों का उत्तर देने के अनन्तर अब स्थितप्रज्ञ पुरूष महत्व बतलाते हुए इस अध्याय का उपसंहार करते हैं-
विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह ।
निर्ममो निरहंकार स शान्तिमधिगच्छति ।।71।।
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जो पुरूष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर ममतारहित, अहंकार रहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है वही शान्ति को प्राप्त होता है अर्थात् वह शान्ति को प्राप्त है ।।71।।
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He who has given up all desires, and moves free from attachment, agoism and thirst for enjoyment attains peace.(71)
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य: = जो ; पुमान् = पुरूष ; सर्वान् = संपूर्ण ; कामान् = कामनाओंको ; विहाय = त्यागकर ; निर्मम: = ममतारहित (और) ; निरहंकार: = अहंकाररहित ; नि:स्पृह: = स्पृहारहित हुआ ; चरति = बर्तता है ; स: = वह ; शान्तिम् = शान्तिको ; अधिगच्छति = प्राप्त होता है
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