"गीता 3:1" के अवतरणों में अंतर
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− | 'बुद्धि' शब्द का अर्थ 'ज्ञान' मान लेने से अर्जुन को भ्रम हो गया , भगवान् के वचनों में 'कर्म' की अपेक्षा 'ज्ञान' की प्रशंसा प्रतीत होने लगी; एवं वे वचन उनको स्पष्ट न दिखायी देकर मिले हुए-से जान पड़ने लगे । अतएव भगवान् से उनका स्पष्टीकरण करवाने की और अपने लिये निश्चित श्रेय:साधन जानने की इच्छा से अर्जुन पूछते हैं- | + | 'बुद्धि' शब्द का अर्थ 'ज्ञान' मान लेने से [[अर्जुन]] को भ्रम हो गया , भगवान् के वचनों में 'कर्म' की अपेक्षा 'ज्ञान' की प्रशंसा प्रतीत होने लगी; एवं वे वचन उनको स्पष्ट न दिखायी देकर मिले हुए-से जान पड़ने लगे । अतएव भगवान् से उनका स्पष्टीकरण करवाने की और अपने लिये निश्चित श्रेय:साधन जानने की इच्छा से अर्जुन पूछते हैं- |
इस अध्याय में नाना प्रकार के हेतुओं से विहित कर्मो की अवश्यकर्तव्यता सिद्ध की गयी है तथा प्रत्येक मनुष्य को अपने-अपने वर्ण आश्रम के लिये विहित कर्म किस प्रकार करने चाहिये, क्यों करने चाहिये, उनके न करने में क्या हानि है, करने में क्या लाभ है, कौन-से कर्म बन्धनकारक हैं और कौन से मुक्ति में सहायक हैं- इत्यादि बातें भलीभाँति समझायी गयी हैं । इस प्रकार इस अध्याय में कर्मयोग का विषय अन्यान्य अध्यायों की अपेक्षा अधिक और विस्तारपूर्वक वर्णित है एवं दूसरे विषयों का समावेश बहुत ही कम हुआ है, जो कुछ हुआ है, वह भी बहुत ही संक्षेप में हुआ है; इसलिये इस अध्याय का नाम 'कर्मयोग' रखा गया है । | इस अध्याय में नाना प्रकार के हेतुओं से विहित कर्मो की अवश्यकर्तव्यता सिद्ध की गयी है तथा प्रत्येक मनुष्य को अपने-अपने वर्ण आश्रम के लिये विहित कर्म किस प्रकार करने चाहिये, क्यों करने चाहिये, उनके न करने में क्या हानि है, करने में क्या लाभ है, कौन-से कर्म बन्धनकारक हैं और कौन से मुक्ति में सहायक हैं- इत्यादि बातें भलीभाँति समझायी गयी हैं । इस प्रकार इस अध्याय में कर्मयोग का विषय अन्यान्य अध्यायों की अपेक्षा अधिक और विस्तारपूर्वक वर्णित है एवं दूसरे विषयों का समावेश बहुत ही कम हुआ है, जो कुछ हुआ है, वह भी बहुत ही संक्षेप में हुआ है; इसलिये इस अध्याय का नाम 'कर्मयोग' रखा गया है । | ||
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१०:१४, ८ अक्टूबर २००९ का अवतरण
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गीता अध्याय-3 श्लोक-1 / Gita Chapter-3 Verse-1
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अध्याय तीन श्लोक संख्या Verses- Chapter-3 |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 |
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