"गीता 3:1" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | 'बुद्धि' शब्द का अर्थ 'ज्ञान' मान लेने से | + | 'बुद्धि' शब्द का अर्थ 'ज्ञान' मान लेने से <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
− | इस अध्याय में नाना प्रकार के हेतुओं से विहित कर्मो की | + | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को भ्रम हो गया , भगवान् के वचनों में 'कर्म' की अपेक्षा 'ज्ञान' की प्रशंसा प्रतीत होने लगी, एवं वे वचन उनको स्पष्ट न दिखायी देकर मिले हुए से जान पड़ने लगे । अतएव भगवान् से उनका स्पष्टीकरण करवाने की और अपने लिये निश्चित श्रेय:साधन जानने की इच्छा से अर्जुन पूछते हैं- |
+ | इस अध्याय में नाना प्रकार के हेतुओं से विहित कर्मो की अवश्य-कर्तव्यता सिद्ध की गयी है तथा प्रत्येक मनुष्य को अपने-अपने वर्ण आश्रम के लिये विहित कर्म किस प्रकार करने चाहिये, क्यों करने चाहिये, उनके न करने में क्या हानि है, करने में क्या लाभ है, कौन-से कर्म बन्धनकारक हैं और कौन से मुक्ति में सहायक हैं- इत्यादि बातें भलीभाँति समझायी गयी हैं । इस प्रकार इस अध्याय में कर्मयोग का विषय अन्यान्य अध्यायों की अपेक्षा अधिक और विस्तारपूर्वक वर्णित है एवं दूसरे विषयों का समावेश बहुत ही कम हुआ है, जो कुछ हुआ है, वह भी बहुत ही संक्षेप में हुआ है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'कर्मयोग' रखा गया है । | ||
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'''अर्जुन बोले-''' | '''अर्जुन बोले-''' | ||
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− | हे जनार्दन ! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर हे केशव ! मुझे भयंकर कर्म में क्यों लगाते हैं ? ।।1।। | + | हे <balloon title="मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">जनार्दन</balloon> ! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर हे <balloon title="मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">केशव</balloon> ! मुझे भयंकर कर्म में क्यों लगाते हैं ? ।।1।। |
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− | Krishna, if you consider knowledge as superior to action, then why do you urge me to this dreadful action, | + | Krishna, if you consider knowledge as superior to action, then why do you urge me to this dreadful action, Kesava !(1) |
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१२:३५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-1 / Gita Chapter-3 Verse-1
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