"गीता 3:11" के अवतरणों में अंतर
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− | ''' | + | '''देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु व: ।'''<br /> |
+ | ''परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यथ ।।11।।''' | ||
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− | + | तुम लोग इस यज्ञ के द्वारा देवताओं को उत्रत करो और वे देवता तुम लोगों को उत्रत करें । इस प्रकार नि:स्वार्थभाव से एक-दूसरे को उत्रत करते हुए तुम लोग परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे ।।11।। | |
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− | + | Foster the gods through this (sacrifice), and let the gods tbe gracious to you. Each fostering other disinterestedly, you will attain the highest good. (11) | |
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− | + | अनेन = इस यज्ञद्वारा ; देवान् = देवताओंकी ; भावयत = उन्नति करो (और) ; ते = वे ; देवा: = देवतालोग ; व: = तुमलोगोंकी ; भावयन्तु = उन्नति करें ; (एवम्) = इस प्रकार ; परस्परम् = आपसमें (कर्तव्य समझकर) ; भावयन्त: = उन्नति करते हुए ; परम् = परम ; श्रेय: = कल्याणको ; अवाप्स्यथ = प्राप्त होवोगे ; | |
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− | <div align="center" style="font-size:120%;">'''<= पीछे Prev | आगे Next =>'''</div> | + | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 3:10|<= पीछे Prev]] | [[गीता 3:12|आगे Next =>]]'''</div> |
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− | {{गीता अध्याय | + | {{गीता अध्याय 3}} |
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११:२०, ८ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-11 / Gita Chapter-X3 Verse-11
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अध्याय तीन श्लोक संख्या Verses- Chapter-3 |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 |
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