"गीता 3:20" के अवतरणों में अंतर
Deepak Sharma (चर्चा | योगदान) |
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | पूर्व श्लोक में भगवान् ने अर्जुन को लोक संग्रह की ओर देखते हुए कर्मों का करना उचित बतलाया | + | पूर्व श्लोक में भगवान् ने <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को लोक संग्रह की ओर देखते हुए कर्मों का करना उचित बतलाया, इस पर यह जिज्ञासा होती है कि कर्म करने से किस प्रकार लोक संग्रह होता है ? अत: यही बात समझाने के लिये कहते हैं- | ||
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− | '''कर्मणैव हि | + | '''कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादय: ।'''<br /> |
'''लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि ।।20।।''' | '''लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि ।।20।।''' | ||
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− | जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्ति रहित | + | जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्ति रहित कर्म द्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए थे । इसलिये तथा लोक संग्रह को देखते हुए भी तू कर्म करने को ही योग्य है अर्थात् तुझे कर्म करना ही उचित है ।।20।। |
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− | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 3:19|<= पीछे Prev]] | [[गीता 3:21|आगे Next =>]]'''</div> | + | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 3:19|<= पीछे Prev]] | [[गीता 3:21|आगे Next =>]]'''</div> |
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− | {{गीता अध्याय | + | {{गीता अध्याय 3}} |
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१२:३५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-3 श्लोक-20 / Gita Chapter-3 Verse-20
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