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हे अर्जुन ! मुझे इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्म में ही बरतता हूँ ।।22।।
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हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
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arjuna, there is nothing in all the three worlds for me to do, nor is there anything worth attaining unattained by Me. Yet I continue to work.(22)  
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Arjuna, there is no work prescribed for me within all the three planetary systems. Nor am I in want of anything, nor have I need to obtain anything- and yet I am engaged in work.(22)  
 
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पार्थ = हे [[अर्जुन]] (यद्यपि) ; मे = मुझे ; त्रिषु = तीनों ; लोकेषु = लोकोंमें ; किंचन = कुछ भी ; कर्तव्यम् = कर्तव्य ; न = नहीं ; अस्ति = है ; च = तथा ; अवाप्तव्यम् = प्राप्त होने योग्य वस्तु ; अनावाप्तम् = अप्राप्त ; न = नहीं है (तो भी मैं) ; कर्मणि = कर्ममें ; एव = ही ; वर्ते = बर्तता हूं ;  
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पार्थ = हे अर्जुन (यद्यपि) ; मे = मुझे ; त्रिषु = तीनों ; लोकेषु = लोकोंमें ; किंचन = कुछ भी ; कर्तव्यम् = कर्तव्य ; न = नहीं ; अस्ति = है ; च = तथा ; अवाप्तव्यम् = प्राप्त होने योग्य वस्तु ; अनावाप्तम् = अप्राप्त ; न = नहीं है (तो भी मैं) ; कर्मणि = कर्ममें ; एव = ही ; वर्ते = बर्तता हूं ;  
 
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१२:३५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण

गीता अध्याय-3 श्लोक-22 / Gita Chapter-3 Verse-22

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकुषु किंचन ।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ।।22।।



हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! मुझे इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्म में ही बरतता हूँ ।।22।।

Arjuna, there is no work prescribed for me within all the three planetary systems. Nor am I in want of anything, nor have I need to obtain anything- and yet I am engaged in work.(22)


पार्थ = हे अर्जुन (यद्यपि) ; मे = मुझे ; त्रिषु = तीनों ; लोकेषु = लोकोंमें ; किंचन = कुछ भी ; कर्तव्यम् = कर्तव्य ; न = नहीं ; अस्ति = है ; च = तथा ; अवाप्तव्यम् = प्राप्त होने योग्य वस्तु ; अनावाप्तम् = अप्राप्त ; न = नहीं है (तो भी मैं) ; कर्मणि = कर्ममें ; एव = ही ; वर्ते = बर्तता हूं ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

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