"गीता 3:22" के अवतरणों में अंतर

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'''श्लोक'''
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'''न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकुषु किंचन ।'''<br />
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'''नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ।।22।।'''
 
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'''शीर्षक'''
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हे अर्जुन ! मुझे इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्म में ही बरतता हूँ ।।22।।
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'''Heading'''
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arjuna, there is nothing in all the three worlds for me to do, nor is there anything worth attaining unattained by Me. Yet I continue to work.(22)
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यहाँ संस्कृत शब्दों के अर्थ डालें
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पार्थ = हे अर्जुन (यद्यपि) ; मे = मुझे ; त्रिषु = तीनों ; लोकेषु = लोकोंमें ; किंचन = कुछ भी ; कर्तव्यम् = कर्तव्य ; न = नहीं ; अस्ति = है ; च = तथा ; अवाप्तव्यम् = प्राप्त होने योग्य वस्तु ; अनावाप्तम् = अप्राप्त ; न = नहीं है (तो भी मैं) ; कर्मणि = कर्ममें ; एव = ही ; वर्ते = बर्तता हूं ;
 
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{{गीता अध्याय 1}}
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{{गीता अध्याय 3}}
 
{{गीता अध्याय}}
 
{{गीता अध्याय}}
 
[[category:गीता]]
 
[[category:गीता]]

१२:३५, ८ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-X श्लोक-X / Gita Chapter-X Verse-X

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकुषु किंचन ।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ।।22।।



हे अर्जुन ! मुझे इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्म में ही बरतता हूँ ।।22।।

arjuna, there is nothing in all the three worlds for me to do, nor is there anything worth attaining unattained by Me. Yet I continue to work.(22)


पार्थ = हे अर्जुन (यद्यपि) ; मे = मुझे ; त्रिषु = तीनों ; लोकेषु = लोकोंमें ; किंचन = कुछ भी ; कर्तव्यम् = कर्तव्य ; न = नहीं ; अस्ति = है ; च = तथा ; अवाप्तव्यम् = प्राप्त होने योग्य वस्तु ; अनावाप्तम् = अप्राप्त ; न = नहीं है (तो भी मैं) ; कर्मणि = कर्ममें ; एव = ही ; वर्ते = बर्तता हूं ;


<= पीछे Prev | आगे Next =>


अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

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