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०९:५४, ५ जनवरी २०१० का अवतरण

गीता अध्याय-3 श्लोक-27 / Gita Chapter-3 Verse-27

प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश:।
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ।।27।।



वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं तो भी जिसका अन्त:करण अहंकार से मोहित हो रहा है, ऐसा अज्ञानी 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मानता है ।।27।।

All actions are being performed by the modes of prakrti (Primordial matter). The fool, whose mind is deluded by egoism, thinks: “I am the doer.”


सर्वश: = संपूर्ण ; कर्माणि = कर्म ; प्रकृते: = प्रकृति के ; गुणै: = गुणोंद्वार ; कि्यमाणानि = किये हुए हैं (तो भी) ; अहंकारविमूढात्मा = अहंकारसे मोहित हुए अन्त:करणवाला पुरूष ; अहम् = मैं ; कर्ता = कर्ता हूं ; इति = ऐसे ; मन्यते = मान लेता है ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

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