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०७:३४, १५ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-27 / Gita Chapter-3 Verse-27
प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश:।
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ।।27।।
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वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं तो भी जिसका अन्त:करण अहंकार से मोहित हो रहा है, ऐसा अज्ञानी 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मानता है ।।27।।
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All actions are being performed by the modes of prakrti (Primordial matter). The fool, whose mind is deluded by egoism, thinks: “I am the doer.”
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सर्वश: = संपूर्ण ; कर्माणि = कर्म ; प्रकृते: = प्रकृति के ; गुणै: = गुणोंद्वार ; कि्यमाणानि = किये हुए हैं (तो भी) ; अहंकारविमूढात्मा = अहंकारसे मोहित हुए अन्त:करणवाला पुरूष ; अहम् = मैं ; कर्ता = कर्ता हूं ; इति = ऐसे ; मन्यते = मान लेता है ;
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