"गीता 3:40" के अवतरणों में अंतर
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− | ==गीता अध्याय- | + | ==गीता अध्याय-3 श्लोक-40 / Gita Chapter-3 Verse-40== |
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | + | इस प्रकार कामरूप वैरी के अत्याचार का और वह जहाँ छिपा रहकर अत्याचार करता है, उन वासस्थानों का परिचय कराकर, अब भगवान् उस कामरूप वैरी को मारने की युक्ति बतलाते हुए उसे मारे डालने के लिये अर्जुन को आज्ञा देते हैं- | |
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− | ''' | + | '''इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते ।'''<br /> |
+ | '''एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ।।40।।''' | ||
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− | + | इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि – ये सब इसके वासस्थान कहे जाते हैं । यह काम इन मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है ।।40।। | |
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| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | + | The senses, the mind and the intellect are declared to be its seat; screening the light of truth through these; it ¼desire½ deludes the embodied soul. (40) | |
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− | + | इन्द्रियाणि =इन्द्रियां; मन: =मन (और); अस्य = इसके; अधिष्ठानम् = वासस्था; उच्च्यते = कहे जाते हैं (और) एष: = यह (काम) एतै: = इन (मन, बुद्धि और इन्द्रियाँ) द्वारा ही ज्ञानम् = ज्ञान को; आवृत्य = आच्छादित करके (इस); देहिनम् =जीवात्मा को; विमोहयति = मोहित करता है। | |
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− | <div align="center" style="font-size:120%;">'''<= पीछे Prev | आगे Next =>'''</div> | + | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 3:39|<= पीछे Prev]] | [[गीता 3:41|आगे Next =>]]'''</div> |
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− | {{गीता अध्याय | + | {{गीता अध्याय 3}} |
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०५:४३, ९ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-40 / Gita Chapter-3 Verse-40
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अध्याय तीन श्लोक संख्या Verses- Chapter-3 |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 |
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