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०५:२८, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-4 श्लोक-5 / Gita Chapter-4 Verse-5
प्रसंग-
भगवान् के मुख से यह बात सुनकर कि अब तक मेरे बहुत-से जन्म हो चुके हैं, यह जानने की इच्छा होती है कि आपका जन्म किस प्रकार होता है और आपके जन्म में तथा अन्य लोगों के जन्म में क्या भेद है । अतएव इस बात को समझाने के लिये भगवान् अपने जन्म का तत्व बतलाते हैं-
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप ।।5।।
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श्रीभगवान् बोले-
हे परन्तप अर्जुन ! मेरे और तेरे बहुत-से जन्म हो चुके हैं । उन सबको तू नहीं जानता, किंतु मैं जानता हूँ ।।5।।
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Sri Bhagavan said:
arjuna, you and I have passed through many births, I remember them all; you do not remember, O chastiser of foes.(5)
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अर्जुन = हे अर्जुन; में = मेरे; च = और; तव = तेरे; बहूनि = बहुत से; जन्मानि = जन्म; व्यतीतानि = हो चुके हैं; परंतप = हे परंतप; तानि = उन; सर्वाणि =सबको; त्वम् = तूं; न = नहीं; वेत्थ = जानता (और); अहम् = मैं; वेद = जानता हूं।
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