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− | साधु | + | साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिये, पाप-धर्म करने वालों का विनाश करने के लिये और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिये मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ ।।8।। |
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− | साधूनाम् = | + | साधूनाम् = साधुपुरुषों का; परित्राणाय = उद्वार करने के लिये; च = और; दुष्कृताम् = दूषित कर्म करने वालों का; विनाशाय = नाश करने के लिये (तथा ); धर्मसंस्थापनार्थाय = धर्म स्थापन करने के लिये; युगे = युग; युगे = युग में; संभावामि =प्रकट होता हूं। |
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१२:३७, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-4 श्लोक-8 / Gita Chapter-4 Verse-8
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