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− | हे | + | हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात् निर्मल और अलौकिक हैं- इस प्रकार जो मनुष्य तत्त्व से जान लेता है, वह शरीर को त्यागकर फिर जन्म को प्राप्त नहीं होता, किंतु मुझे ही प्राप्त होता है ।।9।। | ||
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− | + | Arjuna, My birth and activities are divine. He who knows this in reality is not reborn on leaving his body, but comes to Me. (9) | |
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− | अर्जुन = हे अर्जुन; मे = मेरा (वह ); जन्म = जन्म; च = और; कर्म = कर्म; दिव्यम् = दिव्य अर्थात् अलौकिक है; एवम् = इस प्रकार; य: = जो | + | अर्जुन = हे अर्जुन; मे = मेरा (वह ); जन्म = जन्म; च = और; कर्म = कर्म; दिव्यम् = दिव्य अर्थात् अलौकिक है; एवम् = इस प्रकार; य: = जो पुरुष; तत्वत: = तत्व से; |
वेत्ति = जानता है; स: = वह; देहम् = शरीर को; त्यक्त्वा = त्यागकर; पुन: = फिर; जन्म = जन्म को; न = नहीं; एति = प्राप्त होता है(किन्तु) माम् = मुझे (ही); एति = प्राप्त होता है। | वेत्ति = जानता है; स: = वह; देहम् = शरीर को; त्यक्त्वा = त्यागकर; पुन: = फिर; जन्म = जन्म को; न = नहीं; एति = प्राप्त होता है(किन्तु) माम् = मुझे (ही); एति = प्राप्त होता है। | ||
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१२:३७, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-4 श्लोक-9 / Gita Chapter-4 Verse-9
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