"गीता 5:1" के अवतरणों में अंतर
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− | '''पच्चमोऽध्याय: प्रसंग | + | '''पच्चमोऽध्याय: प्रसंग-''' |
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− | भगवान् के श्रीमुख से ही ' | + | भगवान् के श्रीमुख से ही 'ब्रह्मर्पण ब्रह्म हवि:', 'ब्रह्मग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुहृति', 'तद्विद्वि प्राणिपातेन' आदि वचनों द्वारा ज्ञानयोग अर्थात् कर्मसन्यास की भी प्रशंसा अर्जुन ने सुनी । इससे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
− | इस पच्चम अध्याय में कर्मयोग-निष्ठा और सांख्ययोग-निष्ठा का वर्णन है, सांख्ययोग का ही पर्यायवाची शब्द ' | + | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> यह निर्णय नहीं कर सके कि इन दोनों में से मेरे लिये कौन-सा साधन श्रेष्ठ है । अतएव अब भगवान् के श्रीमुख से ही उसका निर्णय कराने के उद्देश्य से अर्जुन उनसे प्रश्न करते हैं- |
+ | इस पच्चम अध्याय में कर्मयोग-निष्ठा और सांख्ययोग-निष्ठा का वर्णन है, सांख्ययोग का ही पर्यायवाची शब्द 'सन्यास' है । इसलिये इस अध्याय का नाम 'कर्म-सन्यासयोग' रखा गया है । | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | '''संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।'''</ | + | '''संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।'''<br/> |
'''यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ।।1।।''' | '''यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ।।1।।''' | ||
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'''अर्जुन बोले-''' | '''अर्जुन बोले-''' | ||
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− | हे | + | हे <balloon link="index.php?title=कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤"> | ||
+ | कृष्ण</balloon> ! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं । इसलिये इन दोनों में से जो एक मेरे लिये भली-भाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको कहिये ।।1।। | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | ''' | + | '''Arjuna said:''' |
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− | Krishna, you extol sankhyayoga | + | Krishna, you extol sankhyayoga the Yoga of knowledge and then the yoga of action. Pray tell me which of the two is decidedly conducive to my good. (1) |
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०७:४८, २७ दिसम्बर २०११ के समय का अवतरण
गीता अध्याय-5 श्लोक-1 / Gita Chapter-5 Verse-1
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