"गीता 5:27-28" के अवतरणों में अंतर
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− | + | <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। | |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने कर्मयोग और सांख्ययोग के स्वरूप का प्रतिपादन करके दोनों साधनों द्वारा परमात्मा की प्राप्ति और सिद्ध पुरुषों के लक्षण बतलाये । फिर दोनों निष्ठाओं के लिये उपयोगी होने से ध्यान योग भी संक्षेप में वर्णन किया । अब जो मनुष्य इस प्रकार मन, इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करके कर्मयोग, सांख्ययोग या ध्यानयोग का साधन करने में अपने को समर्थ नहीं समझता हो, ऐसे साधक के लिये सुगमता से परम पद की प्राप्ति कराने वाले भक्ति योग का संक्षेप में वर्णन करते हैं- | ||
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− | ''' | + | '''स्पर्शान्कृत्वा वहिर्वाह्रांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: ।'''<br/> |
− | ''' | + | '''प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ।।27।।'''<br/> |
'''यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायण: ।'''<br/> | '''यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायण: ।'''<br/> | ||
− | ''' | + | '''विगतेच्छाभयक्रोधो य: सदा मुक्त एव स: ।।28।।''' |
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१२:४०, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-5 श्लोक-27-28 / Gita Chapter-5 Verse-27-28
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