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− | जब भगवान् इतने प्रेमी और दयासागर हैं कि जिस | + | जब भगवान् इतने प्रेमी और दयासागर हैं कि जिस किसी प्रकार से भी भजने वाले को अपने स्वरूप की प्राप्ति करा ही देते हैं तो फिर सभी लोग उनको क्यों नहीं भजते, इस जिज्ञासा पर कहते हैं- |
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− | अपनी योगमाया से छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिये यह अज्ञानी जनसमुदाय मुझ जन्मरहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात् मुझको जन्मने- | + | अपनी योगमाया से छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिये यह अज्ञानी जनसमुदाय मुझ जन्मरहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात् मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है ॥25॥ |
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१२:४७, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-7 श्लोक-25 / Gita Chapter-7 Verse-25
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