गीता 8:23

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गीता अध्याय-8 श्लोक-23 / Gita Chapter-8 Verse-23

प्रसंग-


<balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने अन्तकाल में किस प्रकार मनुष्य परमात्मा को प्राप्त होता है, यह बात भली-भाँति समझायीं । प्रसंग वश यह बात भी कही कि भगवत्प्राप्ति न होने पर ब्रह्मलोक तक पहुँचकर भी जीव आवागमन के चक्कर से नहीं छूटता । परंतु वहाँ यह बात नहीं कही गयी कि जो वापस न लौटने वाले स्थान को प्राप्त होते हैं, वे किस रास्ते से और कैसे जाते हैं तथा इसी प्रकार जो वापस लौटने वाले स्थानों को प्राप्त होते हैं, वे किस रास्ते से जाते हैं । अत: उन दोनों मार्गों का वर्णन करने के लिये भगवान् प्रस्तावना करते हैं-


यत्र काले त्वनावृत्तिमावृतिं चैव योगिन: ।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ।।23।।



हे अर्जुन ! जिस काल में शरीर त्यागकर गये हुए योगीजन तो वापस न लौटने वाली गति को और जिस काल में गये हुए वापस लौटने वाली गति को ही प्राप्त होते हैं, उस काल को अर्थात् दोनों मार्गों को कहूँगा ।।23।।

Arjuna, I shall now tell you the time(path) departing when yogis do not return, and also the time (path) departing when they do return. (23)


तु = और ; भरतर्षभ = हे अर्जुन ; यत्र = जिस ; काले = काल में ; प्रयाता: = शरीर त्याग कर गये हुए ; योगिन: = योगीजन ; अनावृत्तिम् = पीछा न आने वाली गति को ; च = और ; आवृत्तिम् = पीछा आने वाली गति को ; एव = भी ; यान्ति = प्राप्त होते हैं ; तम् = उस ; कालम् = काल को अर्थात् मार्ग को ; वक्ष्यामि = कहूंगा



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

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