"गोवर्धन" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति २२: पंक्ति २२:
 
==वीथिका गोवर्धन==  
 
==वीथिका गोवर्धन==  
 
<gallery widths="145px" perrow="4">
 
<gallery widths="145px" perrow="4">
चित्र:Girraj-Ji-Govardhan-Mathura-17.jpg|गिरिराज जी, गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Girraj-Ji-Govardhan-Mathura-17.jpg|गिरिराज जी, गोवर्धन<br /> Girraj Ji, Govardhan
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-3.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर भजन-कीर्तन करते श्रृध्दालु, गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-3.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर भजन-कीर्तन करते श्रृध्दालु, गोवर्धन<br /> Devotees Chanting Bhajans On Guru Purnima, Govardhan
चित्र:Chappan-Bhog-Girraj-Ji-Govardhan-Mathura-3.jpg|छप्पन भोग, गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Chappan-Bhog-Girraj-Ji-Govardhan-Mathura-3.jpg|छप्पन भोग, गोवर्धन<br /> Chappan Bhog, Govardhan
चित्र:Cenotaph-Baldev-Singh-1.jpg|राजा बलदेव सिंह [[भरतपुर]] स्मारक, गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Cenotaph-Baldev-Singh-1.jpg|राजा बलदेव सिंह [[भरतपुर]] स्मारक, गोवर्धन<br /> Raja Baldeo Singh Cenotaph, Govardhan
चित्र:Haridev-Temple-Front.jpg|[[हरिदेव जी मंदिर]], गोवर्धन
+
चित्र:Haridev-Temple-Front.jpg|[[हरिदेव जी मंदिर]], गोवर्धन<br /> Haridev Ji Temple, Govardhan
चित्र:kusum-sarovar-01.jpg|[[कुसुम सरोवर]], गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:kusum-sarovar-01.jpg|[[कुसुम सरोवर]], गोवर्धन<br /> Kusum Sarovar, Govardhan
चित्र:Kusum-Sarovar-8.jpg|[[कुसुम सरोवर]], गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Kusum-Sarovar-8.jpg|[[कुसुम सरोवर]], गोवर्धन<br /> Kusum Sarovar, Govardhan
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-11.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रृध्दालुओं की भीड़, गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-11.jpg|गुरु पूर्णिमा पर श्रृध्दालुओं की भीड़, गोवर्धन<br /> Crowd Of Devotees On Guru Purnima, Govardhan
चित्र:Mansi-Ganga-4.jpg|[[मानसी गंगा]] पर स्नान करते श्रृध्दालु, गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Mansi-Ganga-4.jpg|[[मानसी गंगा]] पर स्नान करते श्रृध्दालु, गोवर्धन<br /> Devotees Taking Bath At Mansi Ganga, Govardhan
चित्र:Mansi-Ganga-2.jpg|[[मानसी गंगा]], गोवर्धन
+
चित्र:Mansi-Ganga-2.jpg|[[मानसी गंगा]], गोवर्धन<br /> Mansi Ganga, Govardhan
चित्र:Danghati-Temple-Govardhan-Mathura-1.jpg|[[दानघाटी|दानघाटी मन्दिर]] के सामने श्रृध्दालुओं की भीड़, गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Danghati-Temple-Govardhan-Mathura-1.jpg|[[दानघाटी|दानघाटी मन्दिर]] के सामने श्रृध्दालुओं की भीड़, गोवर्धन<br /> Crowd Of Devotees In Front Of DanGhati Temple, Govardhan
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-12.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर श्रृध्दालुओं की भीड़, गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-12.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर श्रृध्दालुओं की भीड़, गोवर्धन<br /> Crowd Of Devotees On Guru Purnima, Govardhan
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-14.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर दंडौती लगाते श्रृध्दालु, गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-14.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर दंडौती लगाते श्रृध्दालु, गोवर्धन<br /> Devotees Doing Dandauti Parikrama On Guru Purnima, Govardhan
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-16.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर भक्तों का रेलगाड़ी द्वारा आगमन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-16.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर भक्तों का रेलगाड़ी द्वारा आगमन, गोवर्धन<br /> Arrival Of Devotees By Train On Guru Purnima, Govardhan
चित्र:Haridev-Temple-Back.jpg|[[हरिदेव जी मंदिर]], गोवर्धन
+
चित्र:Haridev-Temple-Back.jpg|[[हरिदेव जी मंदिर]], गोवर्धन<br /> Haridev Ji Temple, Govardhan
चित्र:Kusum-Sarovar-7.jpg|[[कुसुम सरोवर]], गोवर्धन
+
चित्र:Kusum-Sarovar-7.jpg|[[कुसुम सरोवर]], गोवर्धन<br /> Kusum Sarovar, Govardhan
चित्र:Chetanya-Mahaprabhu-1.jpg|चैतन्य महाप्रभु मन्दिर,गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Chetanya-Mahaprabhu-1.jpg|चैतन्य महाप्रभु मन्दिर,गोवर्धन<br /> Chetanya Mahaprabhu Temple, Govardhan
चित्र:Cenotaph-Baldev-Singh-2.jpg|राजा बलदेव सिंह [[भरतपुर]] स्मारक, गोवर्धन, [[मथुरा]]
+
चित्र:Cenotaph-Baldev-Singh-2.jpg|राजा बलदेव सिंह [[भरतपुर]] स्मारक, गोवर्धन<br /> Raja Baldeo Singh Cenotaph, Govardhan
 
</gallery>
 
</gallery>
  

०७:०४, २७ जनवरी २०१० का अवतरण

गोवर्धन/ Govardhan / Gobardhan

मथुरा नगर के पश्चिम में लगभग 21 किमी की दूरी पर यह पहाड़ी स्थित है। पुलस्त्य ऋषि के श्राप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है। इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अँगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। गर्गसंहिता में गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे वृन्दावन में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला गोलोक का मुकुटमणि कहा गया है।

दानघाटी, गोवर्धन
DanGhati Temple, Govardhan

पौराणिक मान्यता अनुसार श्री गिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे। दूसरी मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमान जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे लेकिन तभी देव वाणी हुई की सेतु बंध का कार्य पूर्ण हो गया है तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए। पौराणिक उल्लेखों के अनुसार भगवान कृष्ण के काल में यह अत्यन्त हरा-भरा रमणीक पर्वत था। इसमें अनेक गुफा अथवा कदराएँ थी और उनसे शीतल जल के अनेक झरने झरा करते थे। उस काल के ब्रज-वासी उसके निकट अपनी गायें चराया करते थे, अतः वे उक्त पर्वत को बड़ी श्रद्धा की द्रष्टि से देखते थे। भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में प्रचलित की थी, जो उसकी उपयोगिता के लिये उनकी श्रद्धांजलि थी।


भगवान श्री कृष्ण के काल में इन्द्र के प्रकोप से एक बार ब्रज में भयंकर वर्षा हुई। उस समय सम्पूर्ण ब्रज जल मग्न हो जाने का आशंका उत्पन्न हो गई थी। भगवान श्री कृष्ण ने उस समय गोवर्धन के द्वारा समस्त ब्रजवासियों की रक्षा की थी। भक्तों का विश्वास है, श्री कृष्ण ने उस समय गोवर्धन को छाता के समान धारण कर उसके नीचे समस्त ब्रज-वासियों को एकत्र कर लिया था, उस अलौकिक घटना का उल्लेख अत्यन्त प्राचीन काल से ही पुराणादि धार्मिक ग्रन्थों में और कलाकृतियों में होता रहा है। ब्रज के भक्त कवियों ने उसका बड़ा उल्लासपूर्ण कथन किया है। आजकल के वैज्ञानिक युग में उस आलौकिक घटना को उसी रुप में मानना संभव नहीं है। उसका बुद्धिगम्य अभिप्राय यह ज्ञात होता है कि श्री कृष्ण के आदेश अनुसार उस समय ब्रजवासियों ने गोवर्धन की कंदराओं में आश्रय लेकर वर्षा से अपनी जीवन रक्षा की थी।


मानसी गंगा, गोवर्धन
Mansi Ganga, Govardhan

गोवर्धन के महत्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना यह है कि यह भगवान कृष्ण के काल का एक मात्र स्थिर रहने वाला चिन्ह है। उस काल का दूसरा चिन्ह यमुना नदी भी है, किन्तु उसका प्रवाह लगातार परिवर्तित होने से उसे स्थाई चिन्ह नहीं कहा जा सकता है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर है। यहाँ लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर ज़मीन पर लेट जाते हैं और जहाँ तक हाथ फैलते हैं, वहाँ तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं। इसी प्रकार लेटते-लेटते या साष्टांग दण्डवत्‌ करते-करते परिक्रमा करते हैं जो एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह में पूरी हो पाती है। यहाँ गोरोचन, धर्मरोचन, पापमोचन और ऋणमोचन- ये चार कुण्ड हैं तथा भरतपुर नरेश की बनवाई हुई छतिरयां तथा अन्य सुंदर इमारतें हैं। मथुरा से डीग को जाने वाली सड़क गोवर्धन पार करके जहाँ पर निकलती है, वह स्थान दानघाटी कहलाता है। यहाँ भगवान दान लिया करते थे। यहाँ दानरायजी का मंदिर है। इसी गोवर्द्धन के पास 20 कोस के बीच में सारस्वत कल्प में वृन्दावन था तथा इसी के आसपास यमुना बहती थी।


मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, जतिपुरा, मुखारविंद मंदिर, राधाकुण्ड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविन्द कुण्ड, पूंछरी का लौठा, दानघाटी इत्यादि हैं। राधाकुण्ड से तीन मील पर गोवर्धन पर्वत है। पहले यह गिरिराज 7 कोस में फैले हुए थे, पर अब आप धरती में समा गए हैं। यहीं कुसुमसरोवर है, जो बहुत सुंदर बना हुआ हैद। यहाँ वज्रनाभ के पधराए हरिदेवजी थे पर औरंगजेबी काल में वह यहाँ से चले गए। पीछे से उनके स्थान पर दूसरी मूर्ति प्रतिष्ठित की गई। यह मंदिर बहुत सुंदर है। यहाँ श्री वज्रनाभ के ही पधराए हुए एकचक्रेश्वर महादेव का मंदिर है। गिरिराज के ऊपर और आसपास गोवर्द्धन ग्राम बसा है तथा एक मनसा देवी का मंदिर है। मानसीगंगा पर गिरिराज का मुखारविन्द है, जहाँ उनका पूजन होता है तथा आषाढ़ी पूर्णिमा तथा कार्तिक की अमावस्या को मेला लगता है। गोवर्द्धन में सुरभि गाय, ऐरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान का चरणचिह्न है। मानसीगंगा पर जिसे भगवान्‌ ने अपने मन से उत्पन्न किया था, दीवाली के दिन जो दीपमालिका होती है, उसमें मनों घी ख़र्च किया जाता है, शोभा दर्शनीय होती है। परिक्रमा की शुरुआत वैष्णवजन जतिपुरा से और सामान्यजन मानसी गंगा से करते हैं और पुन: वहीं पहुँच जाते हैं। पूंछरी का लौठा में दर्शन करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि यहाँ आने से इस बात की पुष्टि मानी जाती है कि आप यहाँ परिक्रमा करने आए हैं।


परिक्रमा में पड़ने वाले प्रत्येक स्थान से कृष्ण की कथाएँ जुड़ी हैं। मुखारविंद मंदिर वह स्थान है जहाँ पर श्रीनाथजी का प्राकट्य हुआ था। मानसी गंगा के बारे में मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने अपनी बाँसुरी से खोदकर इस गंगा का प्राकट्य किया था। मानसी गंगा के प्राकट्य के बारे में अनेक कथाएँ हैं। यह भी माना जाता है कि इस गंगा को कृष्ण ने अपने मन से प्रकट किया था। गिरिराज पर्वत के ऊपर गोविंदजी का मंदिर है। कहते हैं कि भगवान कृष्ण यहाँ शयन करते हैं। उक्त मंदिर में उनका शयनकक्ष है। यहीं मंदिर में स्थित गुफा है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह राजस्थान स्थित श्रीनाथ द्वारा तक जाती है।


गोवर्धन की परिक्रमा का पौराणिक महत्व है। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक लाखों भक्त यहाँ की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा पर यहाँ की परिक्रमा लगाने का विशेष महत्व है। श्रीगिरिराज पर्वत की तलहटी समस्त गौड़ीय सम्प्रदाय, अष्टछाप कवि एवं अनेक वैष्णव रसिक संतों की साधना-स्थली रही है।

वीथिका गोवर्धन

अन्य लिंक

साँचा:गोवर्धन-दर्शनीय-स्थल