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गोविन्दस्वामी अंतरी के रहनेवाले सनाढ्य ब्राह्मण थे जो विरक्त की भाँति आकर महावन में रहने लगे थे । बाद में गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के शिष्य हुए जिन्होंने इनके रचे पदों से प्रसन्न होकर इन्हें अष्टछाप में लिया । ये गोवर्धन पर्वत पर रहते थे और उसके पास ही इन्होंने कदंबों का एक अच्छा उपवन लगाया था जो अब तक ‘गोविन्दस्वामी की कदंबखडी’ कहलाता है ।
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गोविन्दस्वामी अंतरी के रहनेवाले सनाढ्य ब्राह्मण थे जो विरक्त की भाँति आकर [[महावन]] में रहने लगे थे । बाद में गोस्वामी [[विट्ठलनाथ]] जी के शिष्य हुए जिन्होंने इनके रचे पदों से प्रसन्न होकर इन्हें [[अष्टछाप]] में लिया । ये [[गोवर्धन]] पर्वत पर रहते थे और उसके पास ही इन्होंने कदंबों का एक अच्छा उपवन लगाया था जो अब तक ‘गोविन्दस्वामी की कदंबखडी’ कहलाता है ।
 
इनका रचनाकाल सन् 1543 और 1568 ई. के आसपास माना जा सकता है ।
 
इनका रचनाकाल सन् 1543 और 1568 ई. के आसपास माना जा सकता है ।
वे कवि होने के अतिरिक्त बड़े पक्के गवैये थे । तानसेन कभी-कभी इनका गाना सुनने के लिए आया करते थे ।
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वे कवि होने के अतिरिक्त बड़े पक्के गवैये थे । [[तानसेन]] कभी-कभी इनका गाना सुनने के लिए आया करते थे ।

१५:३३, ११ अगस्त २००९ का अवतरण

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गोविन्दस्वामी / Govind Swami

गोविन्दस्वामी अंतरी के रहनेवाले सनाढ्य ब्राह्मण थे जो विरक्त की भाँति आकर महावन में रहने लगे थे । बाद में गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के शिष्य हुए जिन्होंने इनके रचे पदों से प्रसन्न होकर इन्हें अष्टछाप में लिया । ये गोवर्धन पर्वत पर रहते थे और उसके पास ही इन्होंने कदंबों का एक अच्छा उपवन लगाया था जो अब तक ‘गोविन्दस्वामी की कदंबखडी’ कहलाता है । इनका रचनाकाल सन् 1543 और 1568 ई. के आसपास माना जा सकता है । वे कवि होने के अतिरिक्त बड़े पक्के गवैये थे । तानसेन कभी-कभी इनका गाना सुनने के लिए आया करते थे ।