घोषा

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

घोषा / Ghosha

  • कक्षीवत की पुत्री का नाम घोषा था।
  • घोषा समस्त आश्रमवासियों की लाडली थी किंतु बाल्यावस्था में ही रोग से उसका शरीर विकृत हो गया था। अत: उससे किसी ने विवाह करना स्वीकार नहीं किया। वह साठ वर्ष की वृद्धा हो गयी; किंतु कुमारी ही थी।
  • एक बार उदासी के क्षणों में अचानक उसे ध्यान आया कि उसके पिता कक्षीवत ने अश्विनीकुमारों की कृपा से आयु, शक्ति तथा स्वास्थ्य का लाभ किया था।
  • घोषा ने तपस्या की। साठ वर्षीय वह मन्त्रद्रष्टा हुई। अश्विनीकुमारों का स्वतन किया। उस पर प्रसन्न होकर अश्विनीकुमारों ने दर्शन दिये और उसकी उत्कट आकांक्षा जानकर उसे नीरोग कर रूप-यौवन प्रदान किया। तदनंतर उसका विवाह संपन्न हुआ। अश्विनी कुमारों की कृपा से ही उसने पुत्र धन आदि भी प्राप्त किये। [१]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋग्वेद 1।117, 120 से 123

सम्बंधित लिंक