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==चीर घाट / Cheer ghat==
 
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इस मन्दिर की परिक्रमा करने से श्री [[दानघाटी|गिर्राज जी]] की सप्तकोसीय परिक्रमा का पूर्ण फल प्राप्त होता है । मन्दिर में श्रीराधावृन्दावन चन्द्र, [[राधादामोदर जी मन्दिर|श्रीराधादामोदरजी]], श्रीराधामाधव जी और श्रीराधाछैल छिकन जी के विग्रह है । भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] द्वारा सनातन गोस्वामी को प्रदत्त शिला भी यहां है, जिस पर भगवान का दायाँ चरण चिन्ह, [[बांसुरी]], लकुटी और गाय का खुर अंकित है । यहां जीव गोस्वामी जी एवं अन्य की समाधि भी है ।
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इस मन्दिर की परिक्रमा करने से श्री [[दानघाटी|गिर्राज जी]] की सप्तकोसीय परिक्रमा का पूर्ण फल प्राप्त होता है । मन्दिर में श्रीराधावृन्दावन चन्द्र, [[राधादामोदर जी मन्दिर|श्रीराधादामोदरजी]], श्रीराधामाधव जी और श्रीराधाछैल छिकन जी के विग्रह है । भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] द्वारा [[सनातन गोस्वामी]] को प्रदत्त शिला भी यहां है, जिस पर भगवान का दायाँ चरण चिन्ह, [[बांसुरी]], लकुटी और गाय का खुर अंकित है । यहां [[जीव गोस्वामी]] जी एवं अन्य की समाधि भी है ।
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[[यमुना]] के तट पर एक प्राचीन [[कदम्ब]] वृक्ष है। यहीं पर श्रीकृष्ण ने [[कात्यायनी]] व्रत पालन हेतु यमुना में स्नान करती हुईं गोप-रमणियों के वस्त्र हरण किये थे। ये [[ब्रज]] कुमारियाँ प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त्त में श्री यमुना जी में स्नान करतीं और तट पर बालू से कात्यायनी (योगमाया) की मूर्ति बनाकर आराधना करती हुई यह मंत्र उच्चारण करती थीं-
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कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरी ।<br />
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नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नम: ॥ (श्रीमद्भागवत 10/22/4)<br />
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व्रत के अन्त में कृष्ण ने स्वयं वहाँ पधारकर वस्त्र हरण के बहाने उनको मनोभिलषित वर प्रदान किया- 'अगली शरदपूर्णिमा की रात में तुम्हारी मनोभिलाषा पूर्ण होगी।'
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शेरगढ़ के पास एक और चीरघाट तथा कदम्ब वृक्ष प्रसिद्ध है। कल्पभेद के अनुसार दोनों स्थान चीरघाट हो सकते हैं। इसमें कोई सन्देह की बात नहीं।
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११:३४, १० जनवरी २०१० का अवतरण

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चीर घाट / Cheer ghat

इस मन्दिर की परिक्रमा करने से श्री गिर्राज जी की सप्तकोसीय परिक्रमा का पूर्ण फल प्राप्त होता है । मन्दिर में श्रीराधावृन्दावन चन्द्र, श्रीराधादामोदरजी, श्रीराधामाधव जी और श्रीराधाछैल छिकन जी के विग्रह है । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सनातन गोस्वामी को प्रदत्त शिला भी यहां है, जिस पर भगवान का दायाँ चरण चिन्ह, बांसुरी, लकुटी और गाय का खुर अंकित है । यहां जीव गोस्वामी जी एवं अन्य की समाधि भी है ।


यमुना के तट पर एक प्राचीन कदम्ब वृक्ष है। यहीं पर श्रीकृष्ण ने कात्यायनी व्रत पालन हेतु यमुना में स्नान करती हुईं गोप-रमणियों के वस्त्र हरण किये थे। ये ब्रज कुमारियाँ प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त्त में श्री यमुना जी में स्नान करतीं और तट पर बालू से कात्यायनी (योगमाया) की मूर्ति बनाकर आराधना करती हुई यह मंत्र उच्चारण करती थीं- कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरी ।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नम: ॥ (श्रीमद्भागवत 10/22/4)

व्रत के अन्त में कृष्ण ने स्वयं वहाँ पधारकर वस्त्र हरण के बहाने उनको मनोभिलषित वर प्रदान किया- 'अगली शरदपूर्णिमा की रात में तुम्हारी मनोभिलाषा पूर्ण होगी।' शेरगढ़ के पास एक और चीरघाट तथा कदम्ब वृक्ष प्रसिद्ध है। कल्पभेद के अनुसार दोनों स्थान चीरघाट हो सकते हैं। इसमें कोई सन्देह की बात नहीं।