जज़िया

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जज़िया कर

संयोगवश अकबर शिकार खेलने मथुरा गया था । वहाँ उसे ज्ञात हुआ कि मथुरा आने पर हिन्दुओं को कर देना पड़ता है । उसने यात्री कर उठा दिया । अकबर ने कहा- यह कहाँ का न्याय है कि ईश्वर की आराधना पर कर लिया जाए । अगले ही वर्ष, अपने राज्याभिषेक की नौवीं वर्षगाँठ पर उसने मुस्लिम कानून के अनुसार गैर-मुस्लिमों पर लगने वाले कर 'जज़िया' को भी उठा लिया । यह एक अनोखी घटना थी । फिर तो दो पीढ़ियों तक जज़िया कर नहीं लगा । औरंगजेब ने 1679 में जसवंतसिंह की मृत्यु के बाद जज़िया कर पुनः लगाया । जज़िया से प्रतिवर्ष साम्राज्य को लाखों की आय होती । फिर भी अकबर ने इसे अनुचित माना ।