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जैन लिपिसंख्यान संस्कार / Jain Lipisankhyan Sanskar

  • लिपि संख्यान संस्कार अर्थात बालक को अक्षराभ्यास कराना।
  • शास्त्रारम्भ यज्ञोपवीत के बाद होता है।
  • लिपिसंख्यान संस्कार पाँचवें वर्ष में करना चाहिए।
  • ग्रन्थकारों का मत है- 'प्राप्ते तु पंचमे वर्षें, विद्यारम्भं समाचरेत्।' अर्थात पाँचवें वर्ष में विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिए।

ततोऽस्य पंचमे वर्षे, प्रथमाक्षरदर्शने।
ज्ञेय: क्रियाविधिर्नाम्ना, लिपिसंख्यानसंग्रह:॥
यथाविभवमत्रापि, ज्ञेय: पूजापरिच्छद:।
उपाध्याय पदे चास्य, मतोऽधीती गृहव्रती॥

अर्थात लिपिसंख्यान (विद्यारम्भ) संस्कार पाँचवें वर्ष में करना चाहिए।

  • इस संस्कार में शुभ मुहूर्त अत्यावश्यक है।
  • योग, वार, नक्षत्र-ये सब ही शुभ अर्थात विद्यावृद्धिकर होने चाहिए।
  • उपाध्याय (गुरु) को इस विषय का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।

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