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चित्र:Thirthankara-Rishabhanath-Jain-Museum-Mathura-1.jpg|प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ<br /> 1st Tirthankara Rishabhanath | चित्र:Thirthankara-Rishabhanath-Jain-Museum-Mathura-1.jpg|प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ<br /> 1st Tirthankara Rishabhanath | ||
− | चित्र:Bust-of-Jina-Jain-Museum-Mathura-2.jpg|जैन प्रतिमा का धड़ | + | चित्र:Bust-of-Jina-Jain-Museum-Mathura-2.jpg|जैन प्रतिमा का धड़<br /> Bust of Jina |
चित्र:Head-of-Jina-Jain-Museum-Mathura-4.jpg|आसनस्थ जैन तीर्थकर, राजकीय जैन संग्रहालय, [[मथुरा]] <br /> Head of Jina, Govt. Jain Museum, Mathura | चित्र:Head-of-Jina-Jain-Museum-Mathura-4.jpg|आसनस्थ जैन तीर्थकर, राजकीय जैन संग्रहालय, [[मथुरा]] <br /> Head of Jina, Govt. Jain Museum, Mathura | ||
चित्र:Seated-Jain-Tirthankara-Jain-Museum-Mathura-3.jpg|आसनस्थ जैन तीर्थकर, राजकीय जैन संग्रहालय, [[मथुरा]] <br /> Seated Jain Tirthankara, Govt. Jain Museum, Mathura | चित्र:Seated-Jain-Tirthankara-Jain-Museum-Mathura-3.jpg|आसनस्थ जैन तीर्थकर, राजकीय जैन संग्रहालय, [[मथुरा]] <br /> Seated Jain Tirthankara, Govt. Jain Museum, Mathura |
०५:५५, १५ नवम्बर २००९ का अवतरण
जैन संग्रहालय / Jain Museum
प्रारम्भ में यह संग्रहालय स्थानीय तहसील के पास एक छोटे भवन में रखा गया था । कुछ परिवर्तनों के बाद सन् 1881 में उसे जनता के लिए खोल दिया गया । सन् 1900 में संग्रहालय का प्रबन्ध नगरपालिका के हाथ में दिया गया । इसके पांच वर्ष बाद तत्कालीन पुरातत्त्व अधिकारी डा. जे. पी. एच. फोगल के द्वारा इस संग्रहालय की मूतियों का वर्गीकरण किया गया और सन् 1910 में एक विस्तृत सूची प्रकाशित की गई । इस कार्य से संग्रहालय का महत्त्व शासन की दृष्टि में बढ़ गया और सन् 1912 में इसका सारा प्रबन्ध राज्य सरकार ने अपने हाथ में ले लिया । सन् 1908 से रायबहादुर पं. राधाकृष्ण यहां के प्रथम सहायक संग्रहाध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए, बाद में वे अवैतनिक संग्रहाध्यक्ष हो गये। अब संग्रहालय की उन्नति होने लगी, जिसमें तत्कालीन पुरातत्त्व निदेशक सर जॉन मार्शल और रायबहादुर दयाराम साहनी का बहुत बड़ा हाथ था सन् 1929 में प्रदेशीय शासन ने एक लाख छत्तीस हजार रूपया लगाकर स्थानीय डैम्पियर पार्क में संग्रहालय का सम्मुख भाग बनवाया और सन् 1930 में यह जनता के लिए खोला गया । इसके बाद ब्रिटिश शासन काल में यहां कोई नवीन परिर्वतन नहीं हुआ ।
भारत का शासन सूत्र सन् 1947 में जब अपने हाथ में आया तब से अधिकारियों का ध्यान इस सांस्कृतिक तीर्थ की उन्नति की ओर भी गया । द्वितीय पंचवर्षीय योजना में इसकी उन्नति के लिए अलग धनराशि की व्यवस्था की गयी और कार्य भी प्रारम्भ हुआ । सन् 1958 से कार्य की गति तीव्र हुई । पुराने भवन की छत का नवीनीकरण हुआ और साथ ही साथ सन् 1930 का अधूरा बना हुआ भवन पूरा किया गया । वर्तमान स्थिति में अष्टकोण आकार का एक सुन्दर भवन उद्यान के बीच स्थित है । इनमें 34 फीट चौड़ी सुदीर्घ दरीची बनाई गई है और प्रत्येक कोण पर एक छोटा षट्कोण कक्ष भी बना है । शीघ्र ही मथुरा कला का यह विशाल संग्रह पूरे वैभव के साथ सुयोग्य वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से यहां प्रदर्शित होगा । शासन इससे आगे बढ़ने की इच्छा रखता है और परिस्थिति के अनुरूप इस संग्रहालय में व्याख्यान कक्ष, ग्रंथालय, दर्शकों का विश्राम स्थान आदि की स्वतंत्र व्यवस्था की जा रही है । इसके अतिरिक्त कला प्रेमियों की सुविधा के लिए मथुरा कला की प्रतिकृतियां और छायाचित्रों को लागत मूल्य पर देने की वर्तमान व्यवस्था में भी अधिक सुविधाएं देने की योजना है ।
वीथिका
आसनस्थ जैन तीर्थकर, राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा
Head of Jina, Govt. Jain Museum, Mathuraआसनस्थ जैन तीर्थकर, राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा
Seated Jain Tirthankara, Govt. Jain Museum, Mathuraसर्वतोभद्रिका, राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा
Sarvato Bhadrrika, Govt. Jain Museum, Mathuraतीर्थकर युक्त चौमुखी, राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा
Stele With Nude Jinas, Govt. Jain Museum, Mathuraसिर विहीन जैन तीर्थकर, राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा
Headless Jaina Tirthankara, Govt. Jain Museum, Mathuraअभिलिखित कायोत्यर्ग तीर्थकर प्रतिमा, राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा
Inscribed Jaina Tirthankara in Kayotsaf Mudra, Govt. Jain Museum, Mathura