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*श्रीमद् भागवत की टीका के फुट नोट में संदर्भोल्लेख रहित प्रस्तुत कथा दी गयी है- पूर्वकाल में पांडु देश में सहस्त्राक्ष नामक राजा था। वह रानियों के साथ जलविहार कर रहा था। अत: निकट से जाते [[दुर्वासा]] को उसने प्रणाम नहीं किया। दुर्वासा ने उसे राक्षस होने का शाप दिया तथा मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण का स्पर्श वांछनीय बताया। वही राजा तृणावर्त के रूप में गोकुल पहुंचा। वह राक्षस-रूप में [[पृथ्वी]] पर गिरा तो उसका विशाल शरीर क्षत-विक्षत दिखलायी पड़ रहा था। <ref>श्रीमद् भागवत, 10 । 7। 18-37</ref> | *श्रीमद् भागवत की टीका के फुट नोट में संदर्भोल्लेख रहित प्रस्तुत कथा दी गयी है- पूर्वकाल में पांडु देश में सहस्त्राक्ष नामक राजा था। वह रानियों के साथ जलविहार कर रहा था। अत: निकट से जाते [[दुर्वासा]] को उसने प्रणाम नहीं किया। दुर्वासा ने उसे राक्षस होने का शाप दिया तथा मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण का स्पर्श वांछनीय बताया। वही राजा तृणावर्त के रूप में गोकुल पहुंचा। वह राक्षस-रूप में [[पृथ्वी]] पर गिरा तो उसका विशाल शरीर क्षत-विक्षत दिखलायी पड़ रहा था। <ref>श्रीमद् भागवत, 10 । 7। 18-37</ref> | ||
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१०:०३, ८ जुलाई २०१० का अवतरण
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- तृणावर्त नामक दैत्य कंस की प्रेरणा से गोकुल गया। उससे बवंडर का रूप धारण किया तथा श्रीकृष्ण को उड़ा ले चला। श्रीकृष्ण ने अत्यंत भारी रूप धारण कर लिया तथा दैत्य की गरदन दबाते रहे। अंततोगत्वा वह निष्प्राण होकर कृष्ण सहित ब्रज में गिर पड़ा।
- श्रीमद् भागवत की टीका के फुट नोट में संदर्भोल्लेख रहित प्रस्तुत कथा दी गयी है- पूर्वकाल में पांडु देश में सहस्त्राक्ष नामक राजा था। वह रानियों के साथ जलविहार कर रहा था। अत: निकट से जाते दुर्वासा को उसने प्रणाम नहीं किया। दुर्वासा ने उसे राक्षस होने का शाप दिया तथा मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण का स्पर्श वांछनीय बताया। वही राजा तृणावर्त के रूप में गोकुल पहुंचा। वह राक्षस-रूप में पृथ्वी पर गिरा तो उसका विशाल शरीर क्षत-विक्षत दिखलायी पड़ रहा था। [१]
टीका-टिप्पणी
- ↑ श्रीमद् भागवत, 10 । 7। 18-37
सम्बंधित लिंक
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