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− | प्रशस्तपाद भाष्य को आधार रखते हुए चन्द्रमति या मतिचन्द्र ने दशपदार्थ शास्त्र की रचना की थी। फ्राउवाल्नर प्रभृति विद्वानों के अनुसार इनका नाम चन्द्रमति है किन्तु उई प्रभृति विद्वान चन्द्रमति की अपेक्षा मतिचन्द्र नाम को अधिक ग्राह्य मानते हैं। इनका समय 700 ई. से पूर्व माना जाता है। चन्द्रमति या मतिचन्द्र द्वारा रचित इस ग्रन्थ में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, समवाय और विशेष इन छ: पदार्थों के अतिरिक्त शक्ति, अशक्ति, सामान्य-विशेष, और अभाव इन चार अन्य का भी पदार्थों में परिगणन किया गया है। इनका यह मन्तव्य है कि जैसे भाव पदार्थों के विरोध में अभाव का पदार्थत्व है, उसी प्रकार शक्ति के अभाव रूप में अशक्ति को पदार्थ माना जाना चाहिए।<balloon title="रत्नप्रभा, ब्र. सू. भा. 2.2.11" style=color:blue>*</balloon>(यह ग्रन्थ मूलरूप में उपलब्ध नहीं है, किन्तु इसका एक चीनी अनुवाद मिलता है, जिसका [[संस्कृत]] अनुवाद गंगानाथ झा अनुसंधान पत्रिका के 19वें अंक में प्रकाशित हुआ है।) इस ग्रन्थ के अतिरिक्त किसी भी अन्य ग्रन्थ में दश पदार्थों की चर्चा नहीं है। | + | *फ्राउवाल्नर प्रभृति विद्वानों के अनुसार इनका नाम चन्द्रमति है किन्तु उई प्रभृति विद्वान चन्द्रमति की अपेक्षा मतिचन्द्र नाम को अधिक ग्राह्य मानते हैं। |
+ | *इनका समय 700 ई. से पूर्व माना जाता है। | ||
+ | *चन्द्रमति या मतिचन्द्र द्वारा रचित इस ग्रन्थ में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, समवाय और विशेष इन छ: पदार्थों के अतिरिक्त शक्ति, अशक्ति, सामान्य-विशेष, और अभाव इन चार अन्य का भी पदार्थों में परिगणन किया गया है। | ||
+ | *इनका यह मन्तव्य है कि जैसे भाव पदार्थों के विरोध में अभाव का पदार्थत्व है, उसी प्रकार शक्ति के अभाव रूप में अशक्ति को पदार्थ माना जाना चाहिए।<balloon title="रत्नप्रभा, ब्र. सू. भा. 2.2.11" style=color:blue>*</balloon>(यह ग्रन्थ मूलरूप में उपलब्ध नहीं है, किन्तु इसका एक चीनी अनुवाद मिलता है, जिसका [[संस्कृत]] अनुवाद गंगानाथ झा अनुसंधान पत्रिका के 19वें अंक में प्रकाशित हुआ है।) | ||
+ | *इस ग्रन्थ के अतिरिक्त किसी भी अन्य ग्रन्थ में दश पदार्थों की चर्चा नहीं है। | ||
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०१:५३, ५ मार्च २०१० के समय का अवतरण
चन्द्रमति (मतिचन्द्र) कृत दशपदार्थशास्त्र (दशपदार्थी)
- प्रशस्तपाद भाष्य को आधार रखते हुए चन्द्रमति या मतिचन्द्र ने दशपदार्थ शास्त्र की रचना की थी।
- फ्राउवाल्नर प्रभृति विद्वानों के अनुसार इनका नाम चन्द्रमति है किन्तु उई प्रभृति विद्वान चन्द्रमति की अपेक्षा मतिचन्द्र नाम को अधिक ग्राह्य मानते हैं।
- इनका समय 700 ई. से पूर्व माना जाता है।
- चन्द्रमति या मतिचन्द्र द्वारा रचित इस ग्रन्थ में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, समवाय और विशेष इन छ: पदार्थों के अतिरिक्त शक्ति, अशक्ति, सामान्य-विशेष, और अभाव इन चार अन्य का भी पदार्थों में परिगणन किया गया है।
- इनका यह मन्तव्य है कि जैसे भाव पदार्थों के विरोध में अभाव का पदार्थत्व है, उसी प्रकार शक्ति के अभाव रूप में अशक्ति को पदार्थ माना जाना चाहिए।<balloon title="रत्नप्रभा, ब्र. सू. भा. 2.2.11" style=color:blue>*</balloon>(यह ग्रन्थ मूलरूप में उपलब्ध नहीं है, किन्तु इसका एक चीनी अनुवाद मिलता है, जिसका संस्कृत अनुवाद गंगानाथ झा अनुसंधान पत्रिका के 19वें अंक में प्रकाशित हुआ है।)
- इस ग्रन्थ के अतिरिक्त किसी भी अन्य ग्रन्थ में दश पदार्थों की चर्चा नहीं है।
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