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[[मथुरा]] नगर के असिकुण्डा बाजार में स्थित यह मन्दिर अपने सांस्कृतिक वैभव कला एवं सौन्दर्य के लिए अनुपम है । [[ग्वालियर]] राज के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुल दास पारीख ने इसका निर्माण 1814–15 में प्रारम्भ कराया, जिनकी मृत्यु पश्चात इनकी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने मन्दिर का निर्माण कार्य पूर्ण कराया । वर्ष 1930 में सेवा पूजन के लिए यह मन्दिर पुष्टिमार्ग के आचार्य गिरधरलाल जी कांकरौली वालों को भेंट किया गया । तब से यहां पुष्टिमार्गीय प्रणालिका के अनुसार सेवा पूजा होती है । श्रावण के महीने में प्रति वर्ष यहां लाखों श्रृद्धालु सोने–चाँदी के हिंडोले देखने आते हैं ।
 
[[मथुरा]] नगर के असिकुण्डा बाजार में स्थित यह मन्दिर अपने सांस्कृतिक वैभव कला एवं सौन्दर्य के लिए अनुपम है । [[ग्वालियर]] राज के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुल दास पारीख ने इसका निर्माण 1814–15 में प्रारम्भ कराया, जिनकी मृत्यु पश्चात इनकी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने मन्दिर का निर्माण कार्य पूर्ण कराया । वर्ष 1930 में सेवा पूजन के लिए यह मन्दिर पुष्टिमार्ग के आचार्य गिरधरलाल जी कांकरौली वालों को भेंट किया गया । तब से यहां पुष्टिमार्गीय प्रणालिका के अनुसार सेवा पूजा होती है । श्रावण के महीने में प्रति वर्ष यहां लाखों श्रृद्धालु सोने–चाँदी के हिंडोले देखने आते हैं ।
 
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०४:५६, ११ नवम्बर २००९ का अवतरण



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द्वारिकाधीश मन्दिर / Dwarikadish Temple

द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा

मथुरा नगर के असिकुण्डा बाजार में स्थित यह मन्दिर अपने सांस्कृतिक वैभव कला एवं सौन्दर्य के लिए अनुपम है । ग्वालियर राज के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुल दास पारीख ने इसका निर्माण 1814–15 में प्रारम्भ कराया, जिनकी मृत्यु पश्चात इनकी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने मन्दिर का निर्माण कार्य पूर्ण कराया । वर्ष 1930 में सेवा पूजन के लिए यह मन्दिर पुष्टिमार्ग के आचार्य गिरधरलाल जी कांकरौली वालों को भेंट किया गया । तब से यहां पुष्टिमार्गीय प्रणालिका के अनुसार सेवा पूजा होती है । श्रावण के महीने में प्रति वर्ष यहां लाखों श्रृद्धालु सोने–चाँदी के हिंडोले देखने आते हैं ।

द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा

साँचा:Mathura temple