नर्मदा नदी

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नर्मदा नदी / Narmada River

नर्मदा नदी
Narmada River

नर्मदा मध्य भारत के मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में बहने वाली एक प्रमुख नदी है । महाकाल पर्वत के अमरकण्टक शिखर से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है । इसकी लम्बाई प्रायः 1310 किलो मीटर है । यह नदी पश्चिम की तरफ जाकर खम्बात की खाड़ी में गिरती है । इस नदी के किनारे बसा शहर जबलपुर उल्लेखनीय है । इस नदी के मुहाने पर डेल्टा नहीं है । जबलपुर के निकट भेड़ाघाट का नर्मदा जलप्रपात काफी प्रसिद्ध है । वेदों में नर्मदा का कोई उल्लेख नहीं है। गंगा के उपरान्त भारत की अत्यन्त पुनीत नदियों में नर्मदा एवं गोदावरी के नाम आते हैं। रेवा नर्मदा का दूसरा नाम है और यह सम्भव है कि 'रेवा' से ही 'रेवोत्तरस' नाम पड़ा हो।

ग्रंथों में उल्लेख

वैदिक साहित्य में नर्मदा के विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता।

  • रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था।
  • गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को सोमोद्भवा कहा है।<balloon title="’रेवातुनर्मदा सोमोद्भवा मेकलकन्यका’, पौराणिक अनुश्रुति" style="color:blue">*</balloon>
  • कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है।<balloon title="’तथेत्युपस्यृश्य पय: पवित्रं सोमोद्भवाया: सरितो नृसोम:’ रघुवंश 5,59" style="color:blue">*</balloon>
  • रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है।[१]
  • मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है।<balloon title="(दे॰ रेवा)" style="color:blue">*</balloon>
  • वाल्मीकि रामायण में भी नर्मदा का उल्लेख है।[२] इसके पश्चात के श्लोकों में नर्मदा का एक युवती नारी के रूप में सुंदर वर्णन है[३]
  • महाभारत में नर्मदा को ॠक्षपर्वत से उद्भूत माना गया है।<balloon title="’पुरश्चपश्चाच्च यथा महानदी तमृक्षवन्तं गिरिमेत्य नर्मदा’, शान्तिपर्व 52,32" style="color:blue">*</balloon> <balloon title="(दे॰ वनपर्व 82,52)" style="color:blue">*</balloon>
  • भीष्मपर्व में नर्मदा का गोदावरी के साथ उल्लेख है।<balloon title="’गोदावरीं नर्मदां च बाहुदां च महानदीम्’, भीष्मपर्व 9,14" style="color:blue">*</balloon>
  • श्रीमद्भागवत में रेवा और नर्मदा दोनों का ही एक स्थान पर उल्लेख है।<balloon title="’तापी रेवा सरसा नर्मदा चर्मण्वती सिंधुरन्ध: शोणश्च नदौ’, श्रीमद्भागवत 5,19,18" style="color:blue">*</balloon>
  • शतपथ ब्राह्मण<balloon title="शतपथ ब्राह्मण, 12.9.3.1" style=color:blue>*</balloon> ने रेवोत्तरस की चर्चा की है, जो पाटव चाक्र एवं स्थपति (मुख्य) था, जिसे सृञ्जयों ने निकाल बाहर किया था।[४]
  • पाणिनि<balloon title="पाणिनि 4.2.87" style=color:blue>*</balloon> के एक वार्तिक ने 'महिष्मत्' की व्युत्पत्ति 'महिष' से की है, इसे सामान्यत: नर्मदा पर स्थित माहिष्मती का ही रूपान्तर माना गया है। इससे प्रकट होता है कि सम्भवत: वार्तिककार को (लगभग ई0पू0 चौथी शताब्दी में ) नर्मदा का परिचय था।
  • रघुवंश<balloon title="रघुवंश 96.43" style=color:blue>*</balloon> में रेवा (अर्थात् नर्मदा) के तट पर स्थित माहिष्मती को अनूप की राजधानी कहा गया है।

जान पड़ता है कि कहीं-कहीं साहित्य में इस नदी के पूर्वी या पहाड़ी भाग को रेवा (शाब्दिक अर्थ—उछलने-कूदने वाली) और पश्चिमी या मैदानी भाग को नर्मदा (शाब्दिक अर्थ—नर्म या सुख देने वाली) कहा गया है। (किन्तु महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में उदगम के निकट ही नदी को नर्मदा नाम से अभिहित किया गया है)। नर्मदा के तटवर्ती प्रदेश को भी कभी-कभी नर्मदा नाम से ही निर्दिष्ट किया जाता था। विष्णुपुराण के अनुसार इस प्रदेश पर शायद गुप्तकाल से पूर्व आभीर आदि शूद्रजातियों का अधिकार था।<balloon title="’नर्मदा मरुभूविषयांश्च-आभीर शूद्राद्या: भोक्ष्यन्ति’, विष्णुपुराण 4,24" style="color:blue">*</balloon> वैसे नर्मदा का नदी के रुप में उल्लेख है।[५] <balloon title="दे॰ रेवा, सोमोद्भवा।" style="color:blue">*</balloon>

टीका-टिप्पणी

  1. 'स नर्मदारोधसि सीकराद्रैर्मरुद्भिरानर्तितनक्तमाले, निवेशयामास विलंघिताध्वा क्लांतं रजोधूसरकेतू सैन्यम्’, रघुवंश 5,42
  2. ’पश्यमानस्ततो विध्यं रावणोनर्मदां ययौ, चलोपलजलां पुण्यां पश्चिमोदधिगामिनीम्’, वाल्मीकि रामायण-उत्तरकाण्ड, 31,19
  3. ’चकवाकै: सकारण्डै: सहंसजलकुक्कुटै:, सारसैश्च सदामत्तै: कूजदिभ: सुसमावृताम्।
    फुल्लद्रु मकृत्तोत्तंसां चकवाकयुगस्तनीम्, विस्तीर्णपुलिनश्रोणीं हंसावलि सुमेखलाम्।
    पुष्परेण्वनुलिप्तांगींजलफेनामलांशुकाम् जलावगाहसुस्पर्शां फुल्लोत्पल शुभेक्षणाम् पुष्पकादवरुह् याशु नर्मदां सरितां वराम्, इष्टामिव वरां नारीमवगाह्य दशानन्:’, उत्तरकाण्ड 31,21-22-23-24
  4. रेवोत्तरसमुह पाटवं चाक्रं स्थपतिसृञ्जया अपरुरुधु:। शतपथब्राह्मण (12.9.3.1)।
  5. तैश्चोक्तं पुरुकुत्साय भूभुजे नर्मदा तटे, सारस्वताय तेनापि मह्यं सारस्वतेन च’; ‘नर्मदा सुरसाद्याश्च नद्यो विंध्याद्रिनिर्गता;’, विष्णु पुराण 1,2,9; 2,3,11