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==नेमिनाथ तीर्थंकर / Nemi Nath Tirthankar==
 
==नेमिनाथ तीर्थंकर / Nemi Nath Tirthankar==
 
[[चित्र:neminath-1.jpg|thumb|200px|नेमिनाथ तीर्थंकर, जैन चौरासी मंदिर मथुरा ]]
 
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अवैदिक धर्मों में [[जैन]] धर्म सबसे प्राचीन है, प्रथम तीर्थकर भगवान [[ऋषभदेव]] माने जाते हैं । जैन धर्म के अनुसार भी ऋषभ देव का [[मथुरा]] से संबंध था । जैन धर्म में की प्रचलित अनुश्रुति के अनुसार, नाभिराय के पुत्र भगवान ऋषभदेव के आदेश से [[इंद्र]] ने 52 देशों की रचना की थी । [[शूरसेन]] देश और उसकी राजधानी मथुरा भी उन देशों में थी (जिनसेनाचार्य कृत महापुराण- पर्व 16,श्लोक 155) । जैन `हरिवंश [[पुराण']] में प्राचीन भारत के जिन [[महाजनपद|18 महाराज्यों]] का उल्लेख हुआ है, उनमें शूरसेन और उसकी राजधानी मथुरा का नाम भी है । जैन मान्यता के अनुसार प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के सौ पुत्र हुए थे ।
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अवैदिक धर्मों में [[जैन]] धर्म सबसे प्राचीन है, प्रथम तीर्थकर भगवान [[ऋषभदेव]] माने जाते हैं । जैन धर्म के अनुसार भी ऋषभ देव का [[मथुरा]] से संबंध था । जैन धर्म में की प्रचलित अनुश्रुति के अनुसार, नाभिराय के पुत्र भगवान ऋषभदेव के आदेश से [[इंद्र]] ने 52 देशों की रचना की थी । [[शूरसेन]] देश और उसकी राजधानी मथुरा भी उन देशों में थी (जिनसेनाचार्य कृत महापुराण- पर्व 16,श्लोक 155) । जैन `हरिवंश [[पुराण]]' में प्राचीन भारत के जिन [[महाजनपद|18 महाराज्यों]] का उल्लेख हुआ है, उनमें शूरसेन और उसकी राजधानी मथुरा का नाम भी है । जैन मान्यता के अनुसार प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के सौ पुत्र हुए थे ।
  
 
जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का विहार मथुरा में हुआ था । <ref>जिनप्रभ सूरि कृत 'बिबिध तीर्थ कल्प' का 'मथुरा पुरी कल्प' प्रकरण, पृष्ठ 17 व 85</ref> अनेक विहार-स्थल पर [[कुबेरा देवी]] द्वारा जो स्तूप बनाया गया था, वह जैन धर्म के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध रहा है । चौदहवें तीर्थकर अनंतनाथ का स्मारक तीर्थ भी मथुरा में यमुना नदी के तटपर था । बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ को जैन धर्म में श्री [[कृष्ण]] के समकालीन और उनका चचेरा भाई माना जाता है । इस प्रकार जैन धर्म-ग्रंथों की प्राचीन अनुश्रुतियों में ब्रज के प्राचीनतम इतिहास के अनेक सूत्र मिलते हैं । जैन ग्रंथों मे उल्लेख है कि यहाँ पार्श्वनाथ [[महावीर|महावीर स्वामी]] ने यात्रा की थी । [[पउमचरिय]] में एक कथा वर्णित है जिसके अनुसार सात साधुओं द्वारा सर्वप्रथम मथुरा में ही श्वेतांबर जैन संम्प्रदाय का प्रचार किया गया था ।
 
जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का विहार मथुरा में हुआ था । <ref>जिनप्रभ सूरि कृत 'बिबिध तीर्थ कल्प' का 'मथुरा पुरी कल्प' प्रकरण, पृष्ठ 17 व 85</ref> अनेक विहार-स्थल पर [[कुबेरा देवी]] द्वारा जो स्तूप बनाया गया था, वह जैन धर्म के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध रहा है । चौदहवें तीर्थकर अनंतनाथ का स्मारक तीर्थ भी मथुरा में यमुना नदी के तटपर था । बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ को जैन धर्म में श्री [[कृष्ण]] के समकालीन और उनका चचेरा भाई माना जाता है । इस प्रकार जैन धर्म-ग्रंथों की प्राचीन अनुश्रुतियों में ब्रज के प्राचीनतम इतिहास के अनेक सूत्र मिलते हैं । जैन ग्रंथों मे उल्लेख है कि यहाँ पार्श्वनाथ [[महावीर|महावीर स्वामी]] ने यात्रा की थी । [[पउमचरिय]] में एक कथा वर्णित है जिसके अनुसार सात साधुओं द्वारा सर्वप्रथम मथुरा में ही श्वेतांबर जैन संम्प्रदाय का प्रचार किया गया था ।

१२:४८, २७ सितम्बर २००९ का अवतरण

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नेमिनाथ तीर्थंकर / Nemi Nath Tirthankar

चित्र:Neminath-1.jpg
नेमिनाथ तीर्थंकर, जैन चौरासी मंदिर मथुरा

अवैदिक धर्मों में जैन धर्म सबसे प्राचीन है, प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव माने जाते हैं । जैन धर्म के अनुसार भी ऋषभ देव का मथुरा से संबंध था । जैन धर्म में की प्रचलित अनुश्रुति के अनुसार, नाभिराय के पुत्र भगवान ऋषभदेव के आदेश से इंद्र ने 52 देशों की रचना की थी । शूरसेन देश और उसकी राजधानी मथुरा भी उन देशों में थी (जिनसेनाचार्य कृत महापुराण- पर्व 16,श्लोक 155) । जैन `हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत के जिन 18 महाराज्यों का उल्लेख हुआ है, उनमें शूरसेन और उसकी राजधानी मथुरा का नाम भी है । जैन मान्यता के अनुसार प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के सौ पुत्र हुए थे ।

जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का विहार मथुरा में हुआ था । [१] अनेक विहार-स्थल पर कुबेरा देवी द्वारा जो स्तूप बनाया गया था, वह जैन धर्म के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध रहा है । चौदहवें तीर्थकर अनंतनाथ का स्मारक तीर्थ भी मथुरा में यमुना नदी के तटपर था । बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ को जैन धर्म में श्री कृष्ण के समकालीन और उनका चचेरा भाई माना जाता है । इस प्रकार जैन धर्म-ग्रंथों की प्राचीन अनुश्रुतियों में ब्रज के प्राचीनतम इतिहास के अनेक सूत्र मिलते हैं । जैन ग्रंथों मे उल्लेख है कि यहाँ पार्श्वनाथ महावीर स्वामी ने यात्रा की थी । पउमचरिय में एक कथा वर्णित है जिसके अनुसार सात साधुओं द्वारा सर्वप्रथम मथुरा में ही श्वेतांबर जैन संम्प्रदाय का प्रचार किया गया था ।

एक अनुश्रुति में मथुरा को इक्कीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ [२] की जन्मभूमि बताया गया है, किंतु उत्तर पुराण में इनकी जन्मभूमि मिथिला वर्णित है[३] । विविधतीर्थकल्प से ज्ञात होता है कि नेमिनाथ का मथुरा में विशिष्ट स्थान था [४] । मथुरा पर प्राचीन काल से ही विदेशी आक्रामक जातियों, शक, यवन एवं कुषाणों का शासन रहा ।

टीका-टिप्पणी

  1. जिनप्रभ सूरि कृत 'बिबिध तीर्थ कल्प' का 'मथुरा पुरी कल्प' प्रकरण, पृष्ठ 17 व 85
  2. बीस़ी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 80
  3. बी.सी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 79
  4. विविधतीर्थकल्प, पृ 80