"नेमिनाथ तीर्थंकर" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति १०: पंक्ति १०:
 
एक अनुश्रुति में मथुरा को इक्कीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ <ref>बीस़ी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 80</ref> की जन्मभूमि बताया गया है, किंतु उत्तर पुराण में इनकी जन्मभूमि [[मिथिला]] वर्णित है<ref>बी.सी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 79</ref>। विविधतीर्थकल्प से ज्ञात होता है कि नेमिनाथ का मथुरा में विशिष्ट स्थान था <ref>विविधतीर्थकल्प, पृ 80</ref>। मथुरा पर प्राचीन काल से ही विदेशी आक्रामक जातियों, [[शक]], [[यवन]] एवं [[कुषाण|कुषाणों]] का शासन रहा।
 
एक अनुश्रुति में मथुरा को इक्कीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ <ref>बीस़ी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 80</ref> की जन्मभूमि बताया गया है, किंतु उत्तर पुराण में इनकी जन्मभूमि [[मिथिला]] वर्णित है<ref>बी.सी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 79</ref>। विविधतीर्थकल्प से ज्ञात होता है कि नेमिनाथ का मथुरा में विशिष्ट स्थान था <ref>विविधतीर्थकल्प, पृ 80</ref>। मथुरा पर प्राचीन काल से ही विदेशी आक्रामक जातियों, [[शक]], [[यवन]] एवं [[कुषाण|कुषाणों]] का शासन रहा।
  
टीका-टिप्पणी
+
==टीका-टिप्पणी==
 
<References/>
 
<References/>
 
__INDEX__
 
__INDEX__

१४:०९, २४ नवम्बर २००९ का अवतरण


नेमिनाथ तीर्थंकर / Neminath Tirthankar

चित्र:Neminath-1.jpg
जैन चौरासी मंदिर मथुरा

अवैदिक धर्मों में जैन धर्म सबसे प्राचीन है, प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव माने जाते हैं। जैन धर्म के अनुसार भी ऋषभ देव का मथुरा से संबंध था। जैन धर्म में की प्रचलित अनुश्रुति के अनुसार, नाभिराय के पुत्र भगवान ऋषभदेव के आदेश से इंद्र ने 52 देशों की रचना की थी। शूरसेन देश और उसकी राजधानी मथुरा भी उन देशों में थी (जिनसेनाचार्य कृत महापुराण- पर्व 16,श्लोक 155)। जैन `हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत के जिन 18 महाराज्यों का उल्लेख हुआ है, उनमें शूरसेन और उसकी राजधानी मथुरा का नाम भी है । जैन मान्यता के अनुसार प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के सौ पुत्र हुए थे।

जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का विहार मथुरा में हुआ था। [१] अनेक विहार-स्थल पर कुबेरा देवी द्वारा जो स्तूप बनाया गया था, वह जैन धर्म के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध रहा है। चौदहवें तीर्थकर अनंतनाथ का स्मारक तीर्थ भी मथुरा में यमुना नदी के तटपर था। बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ को जैन धर्म में श्री कृष्ण के समकालीन और उनका चचेरा भाई माना जाता है। इस प्रकार जैन धर्म-ग्रंथों की प्राचीन अनुश्रुतियों में ब्रज के प्राचीनतम इतिहास के अनेक सूत्र मिलते हैं। जैन ग्रंथों मे उल्लेख है कि यहाँ पार्श्वनाथ महावीर स्वामी ने यात्रा की थी। पउमचरिय में एक कथा वर्णित है जिसके अनुसार सात साधुओं द्वारा सर्वप्रथम मथुरा में ही श्वेतांबर जैन संम्प्रदाय का प्रचार किया गया था।

एक अनुश्रुति में मथुरा को इक्कीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ [२] की जन्मभूमि बताया गया है, किंतु उत्तर पुराण में इनकी जन्मभूमि मिथिला वर्णित है[३]। विविधतीर्थकल्प से ज्ञात होता है कि नेमिनाथ का मथुरा में विशिष्ट स्थान था [४]। मथुरा पर प्राचीन काल से ही विदेशी आक्रामक जातियों, शक, यवन एवं कुषाणों का शासन रहा।

टीका-टिप्पणी

  1. जिनप्रभ सूरि कृत 'बिबिध तीर्थ कल्प' का 'मथुरा पुरी कल्प' प्रकरण, पृष्ठ 17 व 85
  2. बीस़ी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 80
  3. बी.सी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 79
  4. विविधतीर्थकल्प, पृ 80