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− | पंचांग काल, [[दिन]] को नामंकित करने की एक प्रणाली है। पंचांग के चक्र को खगोलीय तत्वों से जोड़ा जाता है। बारह [[मास]] का एक [[वर्ष]] और 7 दिन का एक [[सप्ताह]] रखने का प्रचलन [[विक्रम संवत]] से शुरू हुआ। महीने का हिसाब | + | पंचांग काल, [[दिन]] को नामंकित करने की एक प्रणाली है। पंचांग के चक्र को खगोलीय तत्वों से जोड़ा जाता है। बारह [[मास]] का एक [[वर्ष]] और 7 दिन का एक [[सप्ताह]] रखने का प्रचलन [[विक्रम संवत]] से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। गणना के आधार पर [[हिन्दू]] पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी [[नक्षत्र]] आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे [[bk:भारत|भारत]] में माना जाता है। एक साल में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] और [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]]। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं। |
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− | *लोक-जीवन में धार्मिक उत्सवों एवं ज्योतिषीय ज्ञान के हेतु, पहले से ही [[दिवस|दिनों]], मासों एवं वर्ष के सम्बन्ध में जो विधिपूर्वक | + | *लोक-जीवन में धार्मिक उत्सवों एवं ज्योतिषीय ज्ञान के हेतु, पहले से ही [[दिवस|दिनों]], मासों एवं वर्ष के सम्बन्ध में जो विधिपूर्वक ग्रन्थ या संग्रह बनता है उसे "पंचांग" या पंजिका या पंजी कहते हैं। |
− | *[[व्रत|व्रतों]] एवं उत्सवों के सम्पादन के सम्यक कालों तथा [[यज्ञ]], [[उपनयन]], | + | *[[व्रत|व्रतों]] एवं उत्सवों के सम्पादन के सम्यक कालों तथा [[यज्ञ]], [[उपनयन]], विवाह आदि धार्मिक कृत्यों के लिए उचित कालों के परिज्ञान के लिए हमें पंजी या पंचांग की आवश्यकता पड़ती है। |
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*[[bk:भारत|भारत]] में ईसाइयों, पारसियों, मुसलमानों एवं हिन्दुओं के द्वारा सम्भवत: तीस पंचांग व्यवहार में लाए जाते हैं। | *[[bk:भारत|भारत]] में ईसाइयों, पारसियों, मुसलमानों एवं हिन्दुओं के द्वारा सम्भवत: तीस पंचांग व्यवहार में लाए जाते हैं। | ||
*आजकल हिन्दुओं द्वारा कई प्रकार के पंचाग प्रयोग में लाये जाते हैं। इनमें से कुछ पंचांग 'सूर्य सिद्धान्त' पर, कुछ 'आर्य सिद्धान्त' पर और कुछ अपेक्षाकृत पाश्चात्कालीन ग्रन्थों पर आधारित हैं। | *आजकल हिन्दुओं द्वारा कई प्रकार के पंचाग प्रयोग में लाये जाते हैं। इनमें से कुछ पंचांग 'सूर्य सिद्धान्त' पर, कुछ 'आर्य सिद्धान्त' पर और कुछ अपेक्षाकृत पाश्चात्कालीन ग्रन्थों पर आधारित हैं। | ||
*कुछ पंचाग 'चैत्र शुक्ल प्रतिपदा' से, कुछ 'कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा' से आरम्भ किए जाते हैं। कुछ ऐसे स्थान हैं, जैसे- | *कुछ पंचाग 'चैत्र शुक्ल प्रतिपदा' से, कुछ 'कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा' से आरम्भ किए जाते हैं। कुछ ऐसे स्थान हैं, जैसे- | ||
− | * | + | *हलार प्रान्त, जहाँ पर वर्ष का आरम्भ 'आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा' से होता है। [[bk:गुजरात|गुजरात]] एवं उत्तरी भारत, बंगाल को छोड़कर, में 'विक्रम संवत', दक्षिण भारत में '[[शक संवत]]' और [[कश्मीर]] में 'लौकिक संवत' का प्रयोग होता है। |
*उत्तरी भारत एवं तेलंगाना में मास 'पूर्णिमान्त' अर्थात [[पूर्णिमा]] से समाप्त होते हैं। | *उत्तरी भारत एवं तेलंगाना में मास 'पूर्णिमान्त' अर्थात [[पूर्णिमा]] से समाप्त होते हैं। | ||
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१०:३२, १२ नवम्बर २०११ के समय का अवतरण
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पंचांग काल, दिन को नामंकित करने की एक प्रणाली है। पंचांग के चक्र को खगोलीय तत्वों से जोड़ा जाता है। बारह मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। गणना के आधार पर हिन्दू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है। एक साल में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।
- इन्हें भी देखें: विक्रम संवत, राष्ट्रीय शाके, एवं हिजरी संवत
अर्थ
- लोक-जीवन में धार्मिक उत्सवों एवं ज्योतिषीय ज्ञान के हेतु, पहले से ही दिनों, मासों एवं वर्ष के सम्बन्ध में जो विधिपूर्वक ग्रन्थ या संग्रह बनता है उसे "पंचांग" या पंजिका या पंजी कहते हैं।
- व्रतों एवं उत्सवों के सम्पादन के सम्यक कालों तथा यज्ञ, उपनयन, विवाह आदि धार्मिक कृत्यों के लिए उचित कालों के परिज्ञान के लिए हमें पंजी या पंचांग की आवश्यकता पड़ती है।
पंचांग के प्रकार
- भारत में ईसाइयों, पारसियों, मुसलमानों एवं हिन्दुओं के द्वारा सम्भवत: तीस पंचांग व्यवहार में लाए जाते हैं।
- आजकल हिन्दुओं द्वारा कई प्रकार के पंचाग प्रयोग में लाये जाते हैं। इनमें से कुछ पंचांग 'सूर्य सिद्धान्त' पर, कुछ 'आर्य सिद्धान्त' पर और कुछ अपेक्षाकृत पाश्चात्कालीन ग्रन्थों पर आधारित हैं।
- कुछ पंचाग 'चैत्र शुक्ल प्रतिपदा' से, कुछ 'कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा' से आरम्भ किए जाते हैं। कुछ ऐसे स्थान हैं, जैसे-
- हलार प्रान्त, जहाँ पर वर्ष का आरम्भ 'आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा' से होता है। गुजरात एवं उत्तरी भारत, बंगाल को छोड़कर, में 'विक्रम संवत', दक्षिण भारत में 'शक संवत' और कश्मीर में 'लौकिक संवत' का प्रयोग होता है।
- उत्तरी भारत एवं तेलंगाना में मास 'पूर्णिमान्त' अर्थात पूर्णिमा से समाप्त होते हैं।
- बंगाल, महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत में 'अमान्त' अर्थात अमावास्या से अन्त होने वाले होते हैं।
परिणामत: कुछ उपवास एवं उत्सव, जो भारत में सार्वभौम रूप में प्रचलित हैं, जैसे - एकादशी एवं शिवरात्रि के उपवास एवं श्री कृष्ण जन्म सम्बन्धी उत्सव विभिन्न भागों में विभिन्न सम्प्रदायों के द्वारा दो विभिन्न दिनों में होते हैं और कुछ उत्सवों के दिनों में तो एक मास तक का अन्तर पड़ जाता है। जैसे - 'पूर्णिमान्त' मान्यता से कोई उत्सव 'आश्विन कृष्ण पक्ष' में हो तो वही उत्सव 'भाद्रपद कृष्ण पक्ष' में 'अमान्त' गणना के अनुसार हो सकता है और वही उत्सव एक मास के उपरान्त मनाया जा सकता है। आजकल तो यह विभ्रमता बहुत बढ़ गयी है। कुछ पंचांग, जो नाविक पंचांग पर आधारित हैं, इस प्रकार व्यवस्थित है कि ग्रहण जैसी घटनाएँ उसी प्रकार घटें जैसा कि लोग अपनी आँखों से देख लेते हैं। दक्षिण भारत में बहुत-सी पंजिकाएँ हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
अन्य लिंक
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