पसौली

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पसौली / Pasauli

  • सपौली, अघवन और सर्पस्थली इसके नामान्तर है।
  • अजगर सर्प रूपधारी अघासुर को श्रीकृष्ण ने यहाँ मारकर उसका उद्धार किया था।
  • परखम से दो मील दूर उत्तर-पश्चिम में यह स्थान स्थित है।<balloon title="चौमुँहा ग्रामे ब्रह्माआंसि कृष्णपाशे। करये कृष्ण स्तुति अशेष विशेषे।। भक्तिरत्नाकर " style="color:blue">*</balloon>

प्रसंग

एक समय श्रीकृष्ण ग्वाल बालकों के साथ बछड़े चराते-चराते इस वन में पहुँचे। पूतना का भाई अघ(पाप) की प्रतिमूर्ति अघासुर अपनी बहन की मृत्यु का बदला लेने के लिए वहाँ पहुँचा। भयानक विशालकाय अजगर का रूप धारणकर मार्ग में लेट गया। उसका एक जबड़ा ज़मीन पर तथा दूसरा आकाश को छू रहा था। उसका मुख एक गुफ़ा के समान तथा जिह्वा उसमें घुसने के मार्ग के समान दीख रही थीं। ग्वालबाल, बछड़ों को लेकर खेल-ही-खेल में उसके मुख में प्रवेश कर गये। किन्तु उसने अपना मुख बंद नहीं किया; क्योंकि वह विशेष रूप से कृष्ण को निगलना चाहता था, किन्तु कृष्ण कुछ पीछे रह गये थे। श्रीकृष्ण ने ग्वालबालों को दूर से संकेत किया कि इसमें प्रवेश न करें। किन्तु ग्वालबाल श्रीकृष्ण के बल पर निशंक होकर उसमें प्रवेश कर ही गये। श्रीकृष्ण भी सखाओं को बचाने के लिए पीछे से उसके मुख में प्रवेश कर गये। ऐसा देखकर अघासुर ने अपना मुख बंद कर लिया। श्रीकृष्ण अपने शरीर को बढ़ाकर उसके गले ऐसे अटक गये, जिससे उसका कण्ठ अवरूद्ध हो गया और श्वास रूक गया। थोड़ी देर में ही उसका ब्रह्मा रन्ध्र फट गया और उसमें से एक ज्योति निकलकर आकाश में स्थित हो गई। इधर श्रीकृष्ण गोपबालक और बछड़ों को अपनी अमृतयी दृष्टि से जीवन प्रदान कर जैसे ही अघासुर के मुख से निकले, त्यों-हि ब्रह्माजी और देवताओं के देखते-देखते वह ज्योति कृष्ण के चरणों में प्रवेश कर गई। अघासुर का उद्धार कर कृष्ण ग्वालबालों के साथ वृन्दावन लौट आये। वही स्थली सर्पस्थली, सँपोली, पसौली या अधवन के नाम से जानी जाती है।