पांडव

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पांडव / पाण्डव / Pandav

एक बार सभी देवगण गंगा में स्नान करने के लिए गये तो उन्होंने गंगा में बहता एक कमल का फूल देखा। इंद्र उसका कारण खोजने गंगा के मूलस्थान की ओर बढ़े। गंगोत्री के पास एक सुंदरी रो रही थी। उसका प्रत्येक आंसू गंगाजल में गिरकर स्वर्णकमल बन जाता था। इंद्र ने उसके दु:ख का कारण जानना चाहा तो वह इंद्र को लेकर हिमालय पर्वत के शिखर पर पहुंची। वहां एक देव तरूण एक सुंदरी के साथ क्रीड़ारत था। इंद्र ने उसकी अपमानजनक भर्त्सना की तथा दुरभिमान के साथ बताया कि वह सारा स्थान उसके अधीन है। उस देव पुरूष के दृष्टिपात मात्र से इंद्र चेतनाहीन जड़वत हो गये। देव पुरूष ने इंद्र को बताया कि वह रूद्र है तथा इंद्र को एक पर्वत हटाकर गुफा का मुंह खोलने का आदेश दिया। ऐसा करने पर इंद्र ने देखा कि गुफा के अंदर चार अन्य तेजस्वी इंद्र विद्यमान थे। रूद्र के आदेश पर इंद्र ने भी वहां प्रवेश किया। रूद्र ने कहा- "तुमने दुरभिमान के कारण मेरा अपमान किया है, अत: तुम पांचों पृथ्वी पर मानव-रूप में जन्म लोगे। तुम पांचों का विवाह इस सुंदरी के साथ होगा जो कि लक्ष्मी है। तुम सब सत्कर्मों का संपादन करके पुन: इंद्रलोक की प्राप्ति कर पाओगे।" अत: पांचों पांडव तथा द्रौपदी का जन्म हुआ। पंचम इंद्र ही पांडवों में अर्जुन हुए। [१]

टीका-टिप्पणी

  1. म0 भा0, आदिपर्व, अध्याय 196, श्लोक 1 से 36 तक