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पूँछरी गांव [[राजस्थान]] राज्य के अन्तर्गत हैं। [[आन्यौर]] गांव से तीन कि.मी. दक्षिण दिशा में पूँछरी गांव स्थित हैं। पूँछरी में भरतपुर राजाओं के द्वारा अनेक कलात्मक छतरियों का निर्माण कराया गया है। यहां से पूर्व दिशा की परिक्रमा समाप्त होकर पश्चिम की और परिक्रमा मार्ग मोड़ खाता है। पूँछरी नाम होने का कारण- [[गोवर्धन|श्रीगोवर्धन]] का आकार एक मोर के सदृश है। [[राधाकुण्ड|श्रीराधाकुण्ड]] उनके जिहवा एवं [[श्याम कुण्ड|कृष्णकुण्ड]] चिवुक हैं, [[ललिता कुण्ड]] ललाट है। पूंछरी नाचते हुए मोर के पंखों-पूंछ के स्थान पर हैं। इसलिये इस ग्राम का नाम पूछँरी प्रसिद्ध हैं। द्वितीय कारण- श्रीगिरिराजजी की आकृति गौरुप है। इस आकृति में भी श्रीराधाकुण्ड उनके जिहवा एवं ललिताकुण्ड ललाट हैं एवं पूंछ पूंछरीमें हैं। इस कारण से भी इस गांव का नाम पूँछरी कहते हैं। इस स्थान पर श्रीगिरिराजजी के चरण विराजित हैं।  
 
पूँछरी गांव [[राजस्थान]] राज्य के अन्तर्गत हैं। [[आन्यौर]] गांव से तीन कि.मी. दक्षिण दिशा में पूँछरी गांव स्थित हैं। पूँछरी में भरतपुर राजाओं के द्वारा अनेक कलात्मक छतरियों का निर्माण कराया गया है। यहां से पूर्व दिशा की परिक्रमा समाप्त होकर पश्चिम की और परिक्रमा मार्ग मोड़ खाता है। पूँछरी नाम होने का कारण- [[गोवर्धन|श्रीगोवर्धन]] का आकार एक मोर के सदृश है। [[राधाकुण्ड|श्रीराधाकुण्ड]] उनके जिहवा एवं [[श्याम कुण्ड|कृष्णकुण्ड]] चिवुक हैं, [[ललिता कुण्ड]] ललाट है। पूंछरी नाचते हुए मोर के पंखों-पूंछ के स्थान पर हैं। इसलिये इस ग्राम का नाम पूछँरी प्रसिद्ध हैं। द्वितीय कारण- श्रीगिरिराजजी की आकृति गौरुप है। इस आकृति में भी श्रीराधाकुण्ड उनके जिहवा एवं ललिताकुण्ड ललाट हैं एवं पूंछ पूंछरीमें हैं। इस कारण से भी इस गांव का नाम पूँछरी कहते हैं। इस स्थान पर श्रीगिरिराजजी के चरण विराजित हैं।  
 
====<u>श्रीलौठाजी मन्दिर</u>====
 
====<u>श्रीलौठाजी मन्दिर</u>====
पूंछरी गांव में परिक्रमा मार्ग पर श्रीलौठाजी का मन्दिर दर्शनीय है। श्रीलौठाजी से सम्वन्धित एव कथा प्रचलित है कि- [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के श्रीलोठाजी नाम के एक मित्र थे। श्रीकृष्ण ने [[द्वारका]] जाते समय लौठाजी को अपने साथ चलने का अनुरोध किया। इसपर लौठाजी बोले- ''हे प्रिय मित्र ! मुझे ब्रज त्यागने की कोई इच्छा नहीं हैं। परन्तु तुम्हारे ब्रज त्यागने का मुझे अत्यन्त दु:ख हैं। अत: तुम्हारे पुन: ब्रजागमन होने तक मैं अन्न-जल छोड़कर प्राणों का त्याग यही कर दूंगा। जब तू यहाँ लौट आवेगा, तब मेरा नाम लौठा सार्थक होगा।''श्रीकृष्ण ने कहा- ''सखा ! ठीक है मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि बिना अन्न-जल के तुम स्वस्थ और जीवित रहोगे।'' तभी से श्रीलौठाजी पूंछरी में बिना खाये-पिये तपस्या कर रहे हैं- धनि-धनि पूंछरी के लौठा। अन्न खाय न पानी पीवै ऐसेई पड़ौ सिलौठा। उसे विश्वास है कि श्रीकृष्णजी अवश्य यहां लौट कर आवेंगे, क्यों कि श्रीकृष्णजी स्वयं वचन दे गये हैं। इसलिये इस स्थानपर श्रीलौठाजी का मन्दिर प्रतिष्ठित हैं। इस मन्दिर के पास श्रीगौरगोविन्द दास बाबा का कीर्तन भवन दर्शनीय हैं। यहां पर अखण्ड श्रीहरिनाम कीर्तन चल रहा हैं।  
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पूंछरी गांव में परिक्रमा मार्ग पर श्रीलौठाजी का मन्दिर दर्शनीय है। श्रीलौठाजी से सम्वन्धित एव कथा प्रचलित है कि- [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के श्रीलोठाजी नाम के एक मित्र थे। श्रीकृष्ण ने [[द्वारका]] जाते समय लौठाजी को अपने साथ चलने का अनुरोध किया।  
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इसपर लौठाजी बोले- 'हे प्रिय मित्र ! मुझे ब्रज त्यागने की कोई इच्छा नहीं हैं। परन्तु तुम्हारे ब्रज त्यागने का मुझे अत्यन्त दु:ख हैं। अत: तुम्हारे पुन: ब्रजागमन होने तक मैं अन्न-जल छोड़कर प्राणों का त्याग यही कर दूंगा। जब तू यहाँ लौट आवेगा, तब मेरा नाम लौठा सार्थक होगा।'
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श्रीकृष्ण ने कहा- 'सखा ! ठीक है मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि बिना अन्न-जल के तुम स्वस्थ और जीवित रहोगे।' तभी से श्रीलौठाजी पूंछरी में बिना खाये-पिये तपस्या कर रहे हैं- धनि-धनि पूंछरी के लौठा। अन्न खाय न पानी पीवै ऐसेई पड़ौ सिलौठा। उसे विश्वास है कि श्रीकृष्णजी अवश्य यहां लौट कर आवेंगे, क्यों कि श्रीकृष्णजी स्वयं वचन दे गये हैं। इसलिये इस स्थानपर श्रीलौठाजी का मन्दिर प्रतिष्ठित हैं। इस मन्दिर के पास श्रीगौरगोविन्द दास बाबा का कीर्तन भवन दर्शनीय हैं। यहां पर अखण्ड श्रीहरिनाम कीर्तन चल रहा हैं।  
  
 
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०८:४७, २२ जनवरी २०१० का अवतरण

पूंछरी का लौठा / Punchari Ka Lautha

पूंछरी

पूँछरी गांव राजस्थान राज्य के अन्तर्गत हैं। आन्यौर गांव से तीन कि.मी. दक्षिण दिशा में पूँछरी गांव स्थित हैं। पूँछरी में भरतपुर राजाओं के द्वारा अनेक कलात्मक छतरियों का निर्माण कराया गया है। यहां से पूर्व दिशा की परिक्रमा समाप्त होकर पश्चिम की और परिक्रमा मार्ग मोड़ खाता है। पूँछरी नाम होने का कारण- श्रीगोवर्धन का आकार एक मोर के सदृश है। श्रीराधाकुण्ड उनके जिहवा एवं कृष्णकुण्ड चिवुक हैं, ललिता कुण्ड ललाट है। पूंछरी नाचते हुए मोर के पंखों-पूंछ के स्थान पर हैं। इसलिये इस ग्राम का नाम पूछँरी प्रसिद्ध हैं। द्वितीय कारण- श्रीगिरिराजजी की आकृति गौरुप है। इस आकृति में भी श्रीराधाकुण्ड उनके जिहवा एवं ललिताकुण्ड ललाट हैं एवं पूंछ पूंछरीमें हैं। इस कारण से भी इस गांव का नाम पूँछरी कहते हैं। इस स्थान पर श्रीगिरिराजजी के चरण विराजित हैं।

श्रीलौठाजी मन्दिर

पूंछरी गांव में परिक्रमा मार्ग पर श्रीलौठाजी का मन्दिर दर्शनीय है। श्रीलौठाजी से सम्वन्धित एव कथा प्रचलित है कि- श्रीकृष्ण के श्रीलोठाजी नाम के एक मित्र थे। श्रीकृष्ण ने द्वारका जाते समय लौठाजी को अपने साथ चलने का अनुरोध किया। इसपर लौठाजी बोले- 'हे प्रिय मित्र ! मुझे ब्रज त्यागने की कोई इच्छा नहीं हैं। परन्तु तुम्हारे ब्रज त्यागने का मुझे अत्यन्त दु:ख हैं। अत: तुम्हारे पुन: ब्रजागमन होने तक मैं अन्न-जल छोड़कर प्राणों का त्याग यही कर दूंगा। जब तू यहाँ लौट आवेगा, तब मेरा नाम लौठा सार्थक होगा।' श्रीकृष्ण ने कहा- 'सखा ! ठीक है मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि बिना अन्न-जल के तुम स्वस्थ और जीवित रहोगे।' तभी से श्रीलौठाजी पूंछरी में बिना खाये-पिये तपस्या कर रहे हैं- धनि-धनि पूंछरी के लौठा। अन्न खाय न पानी पीवै ऐसेई पड़ौ सिलौठा। उसे विश्वास है कि श्रीकृष्णजी अवश्य यहां लौट कर आवेंगे, क्यों कि श्रीकृष्णजी स्वयं वचन दे गये हैं। इसलिये इस स्थानपर श्रीलौठाजी का मन्दिर प्रतिष्ठित हैं। इस मन्दिर के पास श्रीगौरगोविन्द दास बाबा का कीर्तन भवन दर्शनीय हैं। यहां पर अखण्ड श्रीहरिनाम कीर्तन चल रहा हैं।

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