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==पृथ्वी / Prathvi==
 
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पुराकाल में अंगिराओं ने आदित्यों को यजन कराया। [[आदित्य|आदित्यों]] ने उन्हें दक्षिणास्वरूप संपूर्ण पृथ्वी प्रदान कीं दोपहर के समय दक्षिणास्वरूप प्रदत्त पृथ्वी ने अंगिराओं को परितप्त कर दिया, अत: उन्होंने उसका त्याग कर दिया। उसने (पृथ्वी ने) क्रुछ होकर सिंह का रूप धारण किया तथा वह मनुष्यों को खाने लगी। उससे भयभीत होकर मनुष्य भागने लगे। उनके भाग जाने से क्षुधाग्नि में संतप्त भूमि में प्रदर (लंबे गड्ढे तथा खाइयां) पड़ गये। इस घटना से पूर्व पृथ्वी समतल थी।<balloon title="ऐतरेय ब्राह्मण, 6।35" style=color:blue>*</balloon>
 
पुराकाल में अंगिराओं ने आदित्यों को यजन कराया। [[आदित्य|आदित्यों]] ने उन्हें दक्षिणास्वरूप संपूर्ण पृथ्वी प्रदान कीं दोपहर के समय दक्षिणास्वरूप प्रदत्त पृथ्वी ने अंगिराओं को परितप्त कर दिया, अत: उन्होंने उसका त्याग कर दिया। उसने (पृथ्वी ने) क्रुछ होकर सिंह का रूप धारण किया तथा वह मनुष्यों को खाने लगी। उससे भयभीत होकर मनुष्य भागने लगे। उनके भाग जाने से क्षुधाग्नि में संतप्त भूमि में प्रदर (लंबे गड्ढे तथा खाइयां) पड़ गये। इस घटना से पूर्व पृथ्वी समतल थी।<balloon title="ऐतरेय ब्राह्मण, 6।35" style=color:blue>*</balloon>
 
==पृथ्वी द्वारा प्रार्थना==
 
==पृथ्वी द्वारा प्रार्थना==
प्राचीनकाल में समस्त देवर्षियों की उपस्थिति में पृथ्वी [[इंद्र]] की सभा में पहुंची। उसने याद दिलाया कि उससे पूर्व वह [[ब्रह्मा]] की सभा में गयी थी और उसने बताया था कि वह प्रजा के भार को वहन करके थकती चली जा रही है- तब [[देवता|देवताओं]] ने उसकी समस्या को सुलझा देने का आश्वासन दिया था। अत: पृथ्वी उनके सम्मुख अपने कार्य की सिद्धि की प्रार्थना लेकर गयी थी। [[विष्णु]] ने हंसते हुए सभा में उससे कहा- 'शुभे! [[धृतराष्ट्र]] के सौ पुत्रों में जो सबसे बड़ा [[दुर्योधन]] (सुयोधन) नामक पुत्र है, वह राज्य प्राप्त करके तेरी इच्छा पूर्ण करेगा। वह राजा बनने के उपरांत जगत का संहार करने का अपूर्व प्रयत्न करेगा।' ब्रह्मा ने पूर्वकाल में पृथ्वी का भार हरण करने का आश्वासन दे रखा था। पृथ्वी के दु:खहरण तथा देवताओं के कथन की पूर्ति के लिए दुर्योधन ने [[गांधारी]] के उदर से जन्म लिया था। विभिन्न देवताओं ने भी आंशिक यप् से अवतरित होकर [[महाभारत]] का संपादन किया। [[नारद]] ने [[नारायण]] को अवतरित होने के लिए प्रेरित किया।<balloon title="महाभारत, स्त्रीपर्व, अध्याय 8, श्लोक 21 से 30 तक, श्लोक 47, हरिवंश पुराण हरिवंशपर्व, 52-53" style=color:blue>*</balloon>
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प्राचीनकाल में समस्त देवर्षियों की उपस्थिति में पृथ्वी [[इन्द्र]] की सभा में पहुंची। उसने याद दिलाया कि उससे पूर्व वह [[ब्रह्मा]] की सभा में गयी थी और उसने बताया था कि वह प्रजा के भार को वहन करके थकती चली जा रही है- तब [[देवता|देवताओं]] ने उसकी समस्या को सुलझा देने का आश्वासन दिया था। अत: पृथ्वी उनके सम्मुख अपने कार्य की सिद्धि की प्रार्थना लेकर गयी थी। [[विष्णु]] ने हंसते हुए सभा में उससे कहा- 'शुभे! [[धृतराष्ट्र]] के सौ पुत्रों में जो सबसे बड़ा [[दुर्योधन]] (सुयोधन) नामक पुत्र है, वह राज्य प्राप्त करके तेरी इच्छा पूर्ण करेगा। वह राजा बनने के उपरांत जगत का संहार करने का अपूर्व प्रयत्न करेगा।' ब्रह्मा ने पूर्वकाल में पृथ्वी का भार हरण करने का आश्वासन दे रखा था। पृथ्वी के दु:खहरण तथा देवताओं के कथन की पूर्ति के लिए दुर्योधन ने [[गांधारी]] के उदर से जन्म लिया था। विभिन्न देवताओं ने भी आंशिक यप् से अवतरित होकर [[महाभारत]] का संपादन किया। [[नारद]] ने [[नारायण]] को अवतरित होने के लिए प्रेरित किया।<balloon title="महाभारत, स्त्रीपर्व, अध्याय 8, श्लोक 21 से 30 तक, श्लोक 47, हरिवंश पुराण हरिवंशपर्व, 52-53" style=color:blue>*</balloon>
  
 
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*अत: अनेक प्रकार का फल देनेवाली पृथ्वी पावनी, वसुंधरा, सर्वकाम-दोग्ध्री, मेदिनी इत्यादि विभिन्न नामों से विख्यात है।<balloon title="ब्रह्मण पुराण, 4।16-111" style=color:blue>*</balloon>  
 
*अत: अनेक प्रकार का फल देनेवाली पृथ्वी पावनी, वसुंधरा, सर्वकाम-दोग्ध्री, मेदिनी इत्यादि विभिन्न नामों से विख्यात है।<balloon title="ब्रह्मण पुराण, 4।16-111" style=color:blue>*</balloon>  
 
==कथा==
 
==कथा==
एक बार [[कंस]], केशी, धेनुक, वत्सक आदि के अत्याचारों से पीड़ित होकर भार उठाने में असमर्थता का अनुभव करती हुई पृथ्वी इंद्र की शरण में पहुंची। उसने कहा कि उसके समस्त कष्टों का मूल कारण विष्णु हैं। विष्णु ने वराह रूप धारण करके उसे समुद्र के जल से निकालकर स्थिर रूप प्रदान किया, इसी से उसे समस्त भार का वहन करना पड़ा। इससे पूर्व उसका हरण करके हिरण्याक्ष ने उसे महार्णव में डुबो रखा था। तब कम-से-कम इस प्रकार की पीड़ा से तो वह बची हुई थी। पृथ्वी का कहना था कि [[कलि युग|कलियुग]] में तो उसे रसातल में ही जाना पड़ेगा। इंद्र पृथ्वी को लेकर ब्रह्मा के पास पहुंचा। ब्रह्मा ने भी अपनी असमर्थता स्वीकार की तथा विष्णु के पास गये। विष्णु ने बताया कि समस्त कार्यों के मूल में महेश्वरी हैं। देवी ने प्रकट होकर कहा- 'मेरी शक्ति से युक्त होकर कश्यप ने अपनी माया के साथ [[वसुदेव]] [[देवकी]] के रूप में पहले ही जन्म ले लिया है। हे देवताओं, तुम सब भी अंशावतार लो। विष्णु भी भृगुशाप के कारण देवकी की कोख से जन्म लेंगे। [[वायु]], इंद्र इत्यादि पांडवों के रूप में जायेंगे। मैं भी [[यशोदा]] की कोख से जन्म लेकर देवताओं का काम करूंगी। मैं सबको निमित्त बनाकर अपनी शक्ति से दुष्टों का संहार करूंगी। मद और मोह, आदि विकारों से ग्रस्त यादव-वेश ब्राह्मणों के शाप से नष्ट हो जायेगा। हे देवो, तुम सब पृथ्वी पर अंशावतार ग्रहण करो।' यह कहकर भुवनेश्वरी देवी (महामाया) अंतर्धान हो गयी। पृथ्वी आश्वस्त होकर अपने स्थान पर चली गयी।<balloon title="दे0 भागवत, 4।18-19" style=color:blue>*</balloon>
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एक बार [[कंस]], केशी, धेनुक, वत्सक आदि के अत्याचारों से पीड़ित होकर भार उठाने में असमर्थता का अनुभव करती हुई पृथ्वी इन्द्र की शरण में पहुंची। उसने कहा कि उसके समस्त कष्टों का मूल कारण विष्णु हैं। विष्णु ने वराह रूप धारण करके उसे समुद्र के जल से निकालकर स्थिर रूप प्रदान किया, इसी से उसे समस्त भार का वहन करना पड़ा। इससे पूर्व उसका हरण करके हिरण्याक्ष ने उसे महार्णव में डुबो रखा था। तब कम-से-कम इस प्रकार की पीड़ा से तो वह बची हुई थी। पृथ्वी का कहना था कि [[कलि युग|कलियुग]] में तो उसे रसातल में ही जाना पड़ेगा। इन्द्र पृथ्वी को लेकर ब्रह्मा के पास पहुंचा। ब्रह्मा ने भी अपनी असमर्थता स्वीकार की तथा विष्णु के पास गये। विष्णु ने बताया कि समस्त कार्यों के मूल में महेश्वरी हैं। देवी ने प्रकट होकर कहा- 'मेरी शक्ति से युक्त होकर कश्यप ने अपनी माया के साथ [[वसुदेव]] [[देवकी]] के रूप में पहले ही जन्म ले लिया है। हे देवताओं, तुम सब भी अंशावतार लो। विष्णु भी भृगुशाप के कारण देवकी की कोख से जन्म लेंगे। [[वायु]], इन्द्र इत्यादि पांडवों के रूप में जायेंगे। मैं भी [[यशोदा]] की कोख से जन्म लेकर देवताओं का काम करूंगी। मैं सबको निमित्त बनाकर अपनी शक्ति से दुष्टों का संहार करूंगी। मद और मोह, आदि विकारों से ग्रस्त यादव-वेश ब्राह्मणों के शाप से नष्ट हो जायेगा। हे देवो, तुम सब पृथ्वी पर अंशावतार ग्रहण करो।' यह कहकर भुवनेश्वरी देवी (महामाया) अंतर्धान हो गयी। पृथ्वी आश्वस्त होकर अपने स्थान पर चली गयी।<balloon title="दे0 भागवत, 4।18-19" style=color:blue>*</balloon>
 
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०९:२१, २९ अगस्त २०१० के समय का अवतरण

पृथ्वी / Prathvi

पुराकाल में अंगिराओं ने आदित्यों को यजन कराया। आदित्यों ने उन्हें दक्षिणास्वरूप संपूर्ण पृथ्वी प्रदान कीं दोपहर के समय दक्षिणास्वरूप प्रदत्त पृथ्वी ने अंगिराओं को परितप्त कर दिया, अत: उन्होंने उसका त्याग कर दिया। उसने (पृथ्वी ने) क्रुछ होकर सिंह का रूप धारण किया तथा वह मनुष्यों को खाने लगी। उससे भयभीत होकर मनुष्य भागने लगे। उनके भाग जाने से क्षुधाग्नि में संतप्त भूमि में प्रदर (लंबे गड्ढे तथा खाइयां) पड़ गये। इस घटना से पूर्व पृथ्वी समतल थी।<balloon title="ऐतरेय ब्राह्मण, 6।35" style=color:blue>*</balloon>

पृथ्वी द्वारा प्रार्थना

प्राचीनकाल में समस्त देवर्षियों की उपस्थिति में पृथ्वी इन्द्र की सभा में पहुंची। उसने याद दिलाया कि उससे पूर्व वह ब्रह्मा की सभा में गयी थी और उसने बताया था कि वह प्रजा के भार को वहन करके थकती चली जा रही है- तब देवताओं ने उसकी समस्या को सुलझा देने का आश्वासन दिया था। अत: पृथ्वी उनके सम्मुख अपने कार्य की सिद्धि की प्रार्थना लेकर गयी थी। विष्णु ने हंसते हुए सभा में उससे कहा- 'शुभे! धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में जो सबसे बड़ा दुर्योधन (सुयोधन) नामक पुत्र है, वह राज्य प्राप्त करके तेरी इच्छा पूर्ण करेगा। वह राजा बनने के उपरांत जगत का संहार करने का अपूर्व प्रयत्न करेगा।' ब्रह्मा ने पूर्वकाल में पृथ्वी का भार हरण करने का आश्वासन दे रखा था। पृथ्वी के दु:खहरण तथा देवताओं के कथन की पूर्ति के लिए दुर्योधन ने गांधारी के उदर से जन्म लिया था। विभिन्न देवताओं ने भी आंशिक यप् से अवतरित होकर महाभारत का संपादन किया। नारद ने नारायण को अवतरित होने के लिए प्रेरित किया।<balloon title="महाभारत, स्त्रीपर्व, अध्याय 8, श्लोक 21 से 30 तक, श्लोक 47, हरिवंश पुराण हरिवंशपर्व, 52-53" style=color:blue>*</balloon>

अन्य सन्दर्भ

पाप के भार से कष्ट उठाती हुई पृथ्वी ब्रह्मा की शरण में गयी। ब्रह्मा उसे लेकर क्षीरसागर पहुंचे, जहां विष्णु थे। ब्रह्मा ने समाधि लगाकर कहा कि भगवान (श्रीहरि) का कहना है कि पृथ्वी के कष्ट को वे पहले से ही जानते हैं, अत: उसका उद्धार करने के लिए अवतरित होंगे। दे देवताओ! भगवान का कहना है कि तब तुम सब भी उनको सहयोग देना। श्रीराधा की सेवा के लिए देवांगनाएं भी जन्म लें। समझा-बुझाकर ब्रह्मा ने पृथ्वी को वापस भेज दिया।<balloon title="श्रीमद् भागवत, 10।1" style=color:blue>*</balloon>

राजा पृथु की पुत्री

राजा पृथु की पुत्री कहलाने के कारण वह पृथिवी नाम से विख्यात हुई। राजा पृथु ने पृथिवी को पराजित करके उसे समस्त प्रजा का पालन करने के लिए तैयार किया। सर्वप्रथम पृथु ने स्वायंभुव मनु को बछड़ा बनाकर अपने हाथ से उसे दूहा और सभी प्रकार के अन्न प्राप्त किये। उसका दोहन विभिन्न वर्गों ने भिन्न-भिन्न बछड़े दुहने-वाले, दोहनी इत्यादि के साथ किया तथा सबको एक-दूसरे से भिन्न प्रकार के दूध की प्राप्ति हुई। इनकी तालिका निम्नलिखित है:

  • वर्ग—

(1) ऋषियों ने,
(2) देवताओं ने,
(3) पितरों ने,
(4) नागों ने,
(5) दैत्यों ने,
(6) यक्षों ने,
(7) राक्षसो ने,
(8) गंधर्वों ने,
(9­) वृक्षों ने।

  • बछड़ा—

(1) सोम,
(2) इन्द्र,
(3) यम,
(4) तक्षक,
(5) विरोचन (प्रह्लाद-पुत्र),
(6) कुबेर,
(7) सुमाली,
(8) चित्ररथ
, (9­) पाकड़।

  • दूहनेवाला—

(1) बृहस्पति,
(2) सूर्य,
(3) अंतक (काल),
(4) ऐरावत (नाग),
(5) मधु (दैत्य),
(6) रजतनाभ,
(7) रजतनाभ,
(8) सुमेरू,
(9) पुष्पित साखू (शाल)।

  • दोहनी—

(1) वेद,
(2) स्वर्ण,
(3) चांदी,
(4) तूंबी,
(5) लोहा,
(6) कांच,
(7) कपाल,
(8) कमल,
(9) पलास।

  • प्राप्त पदार्थ-रूपी दूध—

(1) तपस्या,
(2) तेज,
(3) अमृत,
(4) विष,
(5) माया,
(6) अंतर्धान (छुप जाने की विद्या),
(7) शोषित,
(8) रत्न तथा औषधि,
(9) कोंपल।

  • अत: अनेक प्रकार का फल देनेवाली पृथ्वी पावनी, वसुंधरा, सर्वकाम-दोग्ध्री, मेदिनी इत्यादि विभिन्न नामों से विख्यात है।<balloon title="ब्रह्मण पुराण, 4।16-111" style=color:blue>*</balloon>

कथा

एक बार कंस, केशी, धेनुक, वत्सक आदि के अत्याचारों से पीड़ित होकर भार उठाने में असमर्थता का अनुभव करती हुई पृथ्वी इन्द्र की शरण में पहुंची। उसने कहा कि उसके समस्त कष्टों का मूल कारण विष्णु हैं। विष्णु ने वराह रूप धारण करके उसे समुद्र के जल से निकालकर स्थिर रूप प्रदान किया, इसी से उसे समस्त भार का वहन करना पड़ा। इससे पूर्व उसका हरण करके हिरण्याक्ष ने उसे महार्णव में डुबो रखा था। तब कम-से-कम इस प्रकार की पीड़ा से तो वह बची हुई थी। पृथ्वी का कहना था कि कलियुग में तो उसे रसातल में ही जाना पड़ेगा। इन्द्र पृथ्वी को लेकर ब्रह्मा के पास पहुंचा। ब्रह्मा ने भी अपनी असमर्थता स्वीकार की तथा विष्णु के पास गये। विष्णु ने बताया कि समस्त कार्यों के मूल में महेश्वरी हैं। देवी ने प्रकट होकर कहा- 'मेरी शक्ति से युक्त होकर कश्यप ने अपनी माया के साथ वसुदेव देवकी के रूप में पहले ही जन्म ले लिया है। हे देवताओं, तुम सब भी अंशावतार लो। विष्णु भी भृगुशाप के कारण देवकी की कोख से जन्म लेंगे। वायु, इन्द्र इत्यादि पांडवों के रूप में जायेंगे। मैं भी यशोदा की कोख से जन्म लेकर देवताओं का काम करूंगी। मैं सबको निमित्त बनाकर अपनी शक्ति से दुष्टों का संहार करूंगी। मद और मोह, आदि विकारों से ग्रस्त यादव-वेश ब्राह्मणों के शाप से नष्ट हो जायेगा। हे देवो, तुम सब पृथ्वी पर अंशावतार ग्रहण करो।' यह कहकर भुवनेश्वरी देवी (महामाया) अंतर्धान हो गयी। पृथ्वी आश्वस्त होकर अपने स्थान पर चली गयी।<balloon title="दे0 भागवत, 4।18-19" style=color:blue>*</balloon>

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