बरसाना

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बरसाना / Barsana

मथुरा से लगभग 56 कि0मी0 दूर बरसाना राधा के पिता वृषभानु निवासस्थान था। यहां लाड़लीजी का बहुत बड़ा मंदिर है। राधा को लोग यहां प्यार से 'लाड़लीजी' कहते हैं। बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती है। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थी। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मटकी छीन लिया करते थे। बरसाना का पुराना नाम ब्रह्मासरिनि था। राधाष्टमी के अवसर पर प्रतिवर्ष यहां मेला लगता है।


कृष्ण की प्रेयसी राधा की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान को, जो एक बृहत् पहाड़ी की तलहटी में बसा है, प्राचीन समय में बृहत्सानु कहा जाता था (बृहत् सानु=पर्वत शिखर)इसका प्राचीन नाम ब्रहत्सानु, ब्रह्मसानु अथवा व्रषभानुपुर है। इसके अन्य नाम ब्रह्मसानु या वृषभानुपुर (वृषभानु, राधा के पिता का नाम है) भी कहे जाते हैं। बरसाना प्राचीन समय में बहुत समृद्ध नगर था। राधा का प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है जो लाल पत्थर का बना है। यह अब परित्यक्तावस्था में हैं। इसकी मूर्ति अब पास ही स्थित विशाल एवं परमभव्य संगमरमर के बने मंदिर में प्रतिष्ठापित की हुई है। ये दोनों मंदिर ऊंची पहाड़ी के शिखर पर हैं। थोड़ा आगे चल कर जयपुर-नरेश का बनवाया हुआ दूसरा विशाल मंदिर पहाड़ी के दूसरे शिखर पर बना है। कहा जाता है कि औरंगजेब जिसने मथुरा व निकटवर्ती स्थानों के मंदिरों को क्रूरतापूर्वक नष्ट कर दिया था, बरसाने तक न पहुंच सका था।


राधा श्री कृष्ण की ह्लादिनी शक्ति एवं निकुच्जेश्वरी मानी जाती है। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अति प्रिय तीर्थ है। बरसाने की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं जिन्हें यहां के निवासी कृष्णा तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते है। बरसाने से 4 मील पर नंदगांव है जहां श्रीकृष्ण के पिता नंद जी का घर था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है जहां किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था। (संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान) यहाँ भाद्र शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी तक बहुत सुन्दर मेला होता हैं। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है।