बांसुरी

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बांसुरी / Bansuri

मथुरा में संगीत का प्रचलन बहुत पुराना है, बांसुरी ब्रज का प्रमुख वाद्य यंत्र है । भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी को जन–जन जानता है और इसी को लेकर उन्हें मुरलीधर और वंशीधर आदि नामों से पुकारा जाता है ।

  • वर्तमान में भी ब्रज के लोकसंगीत में ढोल मृदंग, झांझ, मंजीरा, ढप, नगाड़ा, पखावज, एकतारा आदि वाद्य यंत्रों का प्रचलन है ।
  • बांसुरी अत्यंत लोकप्रिय सुषिस वाद्य यंत्र माना जाता है , क्यों वह प्राकृतिक बांस से बनाया जाता है , इसलिये लोग उसे बांस बांसुरी भी कहते हैं ।
  • बांसुरी बनाने की प्रक्रिया काफी कठिन नहीं है , सब से पहले बांसुरी के अंदर के गांठों को हटाया जाता है , फिर उस के शरीर पर कुल सात छेद खोदे जाते हैं । सब से पहला छेद मुंह से फूंकने के लिये छोड़ा जाता है , बाकी छेद अलग अलग आवाज निकले का काम देते हैं ।
  • बांसुरी की अभिव्यक्त शक्ति अत्यंत विविधतापूर्ण है , उस से लम्बे, ऊंचे, चंचल, तेज व भारी प्रकारों के सूक्ष्म भाविक मधुर संगीत बजाया जाता है । लेकिन इतना ही नहीं, वह विभिन्न प्राकृतिक आवाजों की नकल करने में निपुण है, मिसाल के लिये उससे नाना प्रकार के पक्षियों की आवाज हू व हू नकल की जा सकती है।
  • बांसुरी की बजाने की तकनीक कलाएं समृद्ध ही नहीं , उस की किस्में भी विविधतापूर्ण हैं , जैसे मोटी लम्बी बांसुरी , पतली नाटी बांसुरी , सात छेदों वाली बांसुरी और ग्यारह छेदों वाली बांसुरी आदि देखने को मिलते हैं और उस की बजाने की शैली भी भिन्न रूपों में पायी जाती है ।